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३४४ ]
सिद्धान्तसार दीपक
धासफी खण्डस्थ कुलाचलों का विष्कम्भ :--
क्रमांक
नाम
विष्कम्म
क्रमांक
नाम
विष्कम्भ
हिमवन्
। २१०५३ योजन । ४
नील
३३६८४
योजन
महाहिमवन् | ८४२१११
,
५
।
रुक्मी
८४२१
निषध
। ३३६८४४
,
६
शिखरी
२१०५१
॥
अब धातकीखण्डस्थ ह्रद, कुण्ड और नदियों के विस्तार प्रावि का निरूपण करते हैं :
धातकोखण्डमध्यस्था हरकुण्डापगादयः । सर्वे द्विगुणविस्ताराः कीर्तिताः श्रीजिनागमे ।।१३।। ह्रदकुण्डापगदिभ्यः प्राम्द्वीपस्थेम्म एव च ।
अवगाहसमाना हि वेदीवनादिभूषिताः ॥१३६।। अर्थ:-जिनागम में जम्बूद्वीपस्थ सरोवर आदि के विस्तार से धातकीखण्डस्थ समस्त ह्रद, कुण्ड और नदियों का विस्तार दूना दूना कहा गया है ।।१३८|| तथा प्रथम (जम्बू) द्वीपस्थ लद, कुण्ड और नदियों के प्रवगाह समान ही धातकी खण्डस्थ वन, वेदी आदि से विभूषित हद कुण्ड और नदियों का अवमाह कहा गया है ॥१३६॥ अब धातकीखण्डस्थ सरोवरों का ध्यास प्रादि कहते हैं :--
योजनानां सहस्र द्वे पद्मस्यायाम एव च । सहस्रयोजनव्यासस्ततो परौ हद्वयो ।।१४०।। द्विगुणद्विगुणव्यासदीघों शेषास्त्रयोऽपरे ।
ह्रदा एभिह दस्तुल्या धातकोखण्डयोर्द्वयोः ॥१४१॥ अर्थ:-बातकोखण्डस्थ पद्मसरोवर का आयाम २००० योजन और विस्तार १००० योजन प्रमाण है। इसके प्रागे स्थित महापद्म का पाराम ४००० योजन एवं विस्तार २००० योजन है।