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सिद्धान्तसार दीपक अर्थः-दोनों धातकी खण्ड द्वीपों ( पूर्ण घातको, पश्चिम धातकी खएडों) के ठीक मध्य भाग में पूर्व, पश्चिम दिशा में एक एक मेरु पर्वत अवस्थित हैं ।। १२२ ।। मेरु पर्वतों की दक्षिण दिशा से प्रारम्भ कर भरत, हैमवत आदि सात-सात क्षेत्र हैं, जो चार-चार लाख योजन प्रमाण लम्बे हैं ॥१२३ भरत आदि क्षेत्रों के मध्य हिमवन् आदि छह-छह कुलाचल पर्वत हैं । इन कुलाचलों का आयाम चार. चार लाख योजन प्रमाण और उत्सेध जम्बूदीपस्थ कुलाचलों के सदृश अर्थात् १००, २००, ४००, ४००, २०० और १०० योजन प्रमाण है, किन्तु धातको खण्डस्थ कुलाचलों आदि का विष्कम्भ विस्तार जम्बूद्वीपस्थ कुलाचलों के विस्तार से दुने दुने प्रमाण वाला है ।।१२४-१२५।। जिस प्रकार चक्र-पहिया में नारा होते हैं और प्रारों के मध्य भाग में छिद्र होते हैं, इसी प्रकार इस धातको खण्ड में स्थित कुलाचल आरों के सदृश हैं और उनके मध्य स्थित क्षेत्रों में भरतादि सभी क्षेत्र स्थित हैं, जो अभ्यन्तर अर्थात् सवरण समुद्र को पोर संकीर्ण तथा बाह्य अर्थात कालोदधि की ओर विस्तीर्ण हैं ॥१२६-१२७।।
इसका चित्रण निम्न प्रकार है :
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