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दशमोऽधिकार :
[ ३३६ योजन चौड़े, चार सौ योजन ऊँचे ( और दक्षिणोत्तर लम्बे ) हैं। ये दोनों पति काञ्चन वर्ण वाले हैं, और इनके शिखर चार-चार कूटों से सुशोभित हैं। वे दप्वाकार पर्वत एक एक जिनमन्दिर से विभूपित हैं, तथा लवणसमुद्र और कालोदधि समुद्र की वेदियों को स्पर्श करते हैं ।।१११-११४॥ उन
वाकार पर्वतों से वह घातकी खण्ड पूर्ण धातको खण्ड और पश्चिम घातको खण्ड के नाम से दो प्रकार वाला है ।। ११५॥ जिनेन्द्र भगवंतों के द्वारा जिनागम में धातकी खण्ड का अभ्यंतर सूची व्यास पांच लाख योजन, मध्यम सूची व्यास नौ लाख योजन और बाह्य सूची श्यास तेरह लाख योजन प्रमाण कहा गया है। तीनो सूची ब्यासी का त्रिगुरणा तीनों स्थूल परिधियों का प्रमाण होता है । अर्थात् अभ्यन्तर सूची व्यास को स्थूल परिधि पन्द्रह लाखा, मध्यम परिधि सत्ताईस लाख और बाह्य सूची व्यास की स्थूल परिधि का प्रमाण उन्तालीस लाख योजन है ।। ११६-११७|| जिनागम में विद्वानों के द्वारा धातकी खण्ड की अभ्यन्तर सूक्ष्म परिधि का प्रमाण पंद्रह लाल इक्यासो हजार एक सौ उन्तालीस (१५८ ११३६) योजन कहा गया है। मध्यम सूक्ष्म परिधि का प्रमाण अट्ठाईस लास्स छयालीस हजार उनचास ( २८४६०४६ ) योजन और बाह्य सूची व्यास की सूक्ष्म परिधि का प्रमाण जिनेन्द्र भगवान के द्वारा इक्तालीस लाख दश हजार नौ सौ इकसठ (४११०६६१) योजन कहा गया है ॥११८-१२।।
अब धातकोखण्डस्थ मेरु पर्वतों का अवस्थान, भरतादि क्षेत्रों का प्रायाम और हिमवान् प्रादि पर्वतों का उत्सेध एवं विस्तार आदि दर्शा कर दृष्टान्त द्वारा इनके प्राकारों का वर्णन करते हैं :--
महामेरोश्च मेरूद्वौ पूर्वापरौ हि क्षुल्लको 1 स्तो मध्यभागयोर्धातकीखण्डद्वीपयोद्धयोः ॥१२२॥ मेरोदक्षिणदिग्भागाद् भरतादीनि सप्त च । क्षेत्राणि योजनानां स्युश्चतुर्लक्षायतान्यपि ॥१२३॥ योजनानां चतुर्लभैरायामा षट् कुलाद्रयः । हिमाद्रघाद्याः समोत्सेधा जम्बूद्वीपकुलाचलः ॥१२४॥ प्रायद्वीपकुलादिभ्यो सर्वेभ्यो विस्तरान्यिताः । प्रत्येकं द्विगुणब्यासेनैव सन्ति मनोहराः ॥१२५।। चक्रत्येह यथाराश्च मध्ये छिद्राणि चारयोः । द्वीपस्यास्य तथा सन्ति हराकाराः कलाद्यः ।।१२६॥ परान्तरन्ध्रतुल्यानि क्षेत्राणि निखिलानि च । सङ्कीर्णानि निजाभ्यन्तरे बाहये विस्तृतान्यपि ॥१२७||