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दामोऽधिकार
[ ३३७ अब कालोदधि समुद्र के २४ द्वीप कह कर सम्पूर्ण द्वीपों को संख्या दर्शाते हैं :
कालोवजलधेस्तद्वत् सन्स्येवोभयभागयोः । द्वीपाः सर्वेऽष्टचत्वारिंशत्कुभोगमहोयुताः ॥१०३।। विश्वेऽमो पिण्डिता द्वीपा अब्धियान्तरे स्थिताः ।
कुभोगभूनराकोर्णा ज्ञेयाः षणवतिप्रमाः ॥१०४॥ अर्थ:-लवणसमुद्र के सदृश कालोदधि समुद्र के बाह्याभ्यन्तर दोनों भागों में भी चौबीसचौबीस द्वीप हैं। ये सम्पूर्ण द्वीप ४८ कुभोगभूमियों से युक्त हैं ।। १०३ ॥ कालोदधि और लवण इन दोनों समुद्रों के प्रभ्यन्तर भाग में स्थित अड़तालीस अड़तालीस द्वीपों का योग कर देने पर कुभोगभूमिज मनुष्यों से व्याप्त ६६ अन्तर्वीप प्राप्त होते हैं ।।१०४।। अब लवण समुद्र का प्रवगाह और उसकी सूक्ष्म परिधि का प्रमाण प्रादि कहते हैं :
मध्यभामेऽवगाहोऽस्य सहस्रयोजनप्रमः । मक्षिकापक्षसादृश्यश्चान्ते पातालबजितः ॥१०॥ पञ्चाग्रदशलक्षाणि ह्ये काशीतिप्रमाण्यपि । सहस्राणि शतं चैकोनचत्वारिंशदेव हि ॥१०॥ योजनानामिति ख्यातसंख्यया लवणाम्बुधौ । परिधिः प्रोविता सूक्ष्मा किञ्चिदूना जिनागमे ॥१०७।। एवं नाना गिरितीपादियुतो लवणार्णवः । जम्बूद्वीपपरिक्षेपावृतोऽत्र वणितो बुधः ॥१०८।। वेलाः पातालरन्ध्राणि वृद्धिहानिशिखादयः । विद्यन्ते लवणाब्धौ च न शेषा संख्यवाधिषु ।।१०।। यतः शेषार्णवाः सर्वे टोत्कीर्णा इवोजिताः ।
सहस्रयोजनागाहा वृद्धिह्रासातिगाः स्मृताः ॥११०॥ अर्था—ल बणसमुद्र के बडवानलों का मध्य भाग में जल का अवगाह ( गहराई ) एक हजार योजन है, और अन्त में अर्थात् समुद्र के किनारों पर जल मक्खी के पंख सहश पतला है ।।१०५॥ जिनागम में लवण समुद्र की सूक्ष्म परिधि का प्रमाण कुछ कम पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनतालीस ( १५८११३६ ) योजन कही गई है ॥१०६-१०७|| विद्वानों ने लवण समुद्र को अनेकों पर्वतों एवं द्वीपों से युक्त, जम्बूद्वीप को वेष्टित किये हुए और चूड़ो सहश वलयाकार कहा है ॥१०८।।