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सिद्धान्तसार दीपक
नानारत्नमया रम्याः प्रेक्षागृहा मनोहराः। वेषां च पुरतः सन्तितुङ्गा बोडशयोजनः ॥४७॥ योजनानां चतुःषष्टिदीर्घस्यासान्विताः पराः । हमारामधास्तीजाजालावृताः सभागहाः ॥४८॥ तेषां सभागहाणां कांचन पोठानिसन्ति च । अशीतियोजनायामविस्तृतानि शुभान्यपि ।।४६॥ द्वियोजनोच्छुितान्यच्चः पद्मवेदीयतानि वै ।
मनोहराणि रम्याणि प्रदोरतर्मणि तोरणः ॥५०॥ अर्थ:-उन मुखमण्डपों के आगे सौ योजन लम्बे, सौ योजन चौड़े, सोलह योजन ऊँचे, अर्ध योजन नींव से युक्त अनेक रत्नों से व्याय, अत्यन्त रमणीक और मन को हरण करने वाले प्रेक्षागृह हैं । उन प्रेक्षागृहों के आगे सोलह योजन ऊँचे, चौंसठ योजन लम्चे, चौंसठ योजन चौड़े, दीप्ति समूह से प्रावृत्त स्वर्ण एवं रत्नमय उत्तम सभागृह हैं ।।४६-४८॥ उन सभागृहों के पीठ स्वर्णमय हैं। तथा अस्सी योजन लम्बे, अस्सो योजन चौड़े और अत्यन्त सुन्दर हैं। वे पीठ देदीप्यमात मणियों के दो योजन ऊँचे तोरणों से संयुक्त, अत्यन्त रमणीक और मनोहर पद्मवेदी से रम्य हैं ॥४६-५०।। अब नवस्तुप और मानस्तम्भ का वर्णन करते हैं:
तेषां सभालयानां पुरतः स्तूपा नवोजिताः । योजनानां चतुःषष्टयायामच्यासोन्नताः शुभाः ॥५१॥ जिनेन्द्रप्रतिमापूर्णा मेखलात्रयसंयुताः । चतुर्विशतिसद्ध मवेदीभिर्वेष्टिताः पराः ॥५२॥ रत्नपीठेषु चत्वारिंशयोजनोच्छुितेषु च । स्फुरदरत्नमयाः सन्ति स्थितादेवखगाचिताः ॥५३॥ गोपुराणां बहिर्भागे वीथीनां मध्यभूमिषु ।
मानस्तम्भा भवन्त्यच्च दीप्ता घण्टाद्यलंकृताः ।।५४॥ अर्थ:-उन सभागृहों के भागे चालीस योजन ऊँने रत्नमय पीठों पर देव और विद्याधरों से पूजित देदोप्यमान रत्नमय जिनद्र प्रतिमानों से संयुक्त, तीन मेखलाओं से वेष्टित चौंसठ योजन लम्बे, चौंसठ योजन चौड़े और चौंसठ योजन ऊँचे, श्रेष्ठ स्वर्णमय चौबीस वेदियों से परिवेष्टित, अति उत्तम और अत्यन्त सुन्दर नव स्तूप हैं ।।५१-५३।। गोपुरों के बाह्यभाग में तथा वीथियों (गलियों ) की मध्यभूमि में अतिशय प्रभावान् और घण्टा आदि से अलंकृत मानस्तम्भ हैं ।। ५४।।