________________
अष्टमोऽधिकारः
[ २४१ अब कमछकावती देश, ब्रहवती विभङ्गा, पावत देश और नलिनकट वक्षार की प्रदस्थिति कहते हैं :--
ततोऽस्ति विषयः कच्छकायती संज्ञकोऽभुतः। मध्येऽरिष्टपुरी तस्य भवेद् धर्मसुखाकरा ॥२४॥ ततो द्रवतीसंज्ञा विमङ्गा निम्नगा भवेत् । पूर्वोक्तवर्णनायुक्ता कुण्डात्सीतान्तरागता ॥२५॥ तस्याः पूर्व महान्देश प्रावर्ताख्योऽस्ति शाश्वतः । तन्मध्ये नगरी रम्या खड्गाख्या च शुभाकरा ॥२६॥ ततो नलिनकटाख्यो वक्षाराद्विमहान् भवेत् ।। चतुःकटाङ्कितो हेममयो जिनालयादिमृत् ।।२७।। सिद्ध चावर्तसं च लागलावर्तनामकम् ।
नलिनाख्यं चतुःकूटरमीभिर्मूविधनसोऽन्वितः ॥२८॥ अर्थः....पा. फाट वकार गति को लागे नायकापती नाम का अनुपम देश है । उसके मध्य में धर्म और सुख की खान स्वरूप अरिष्ट नाम की नगरी है ।।२४।। कच्छकावती देश के प्रागे पूर्वोक्त (ग्राहवती नदी के वर्णन युक्त द्रवती नदी है जो कुण्ड से निकलकर सीता नदी पर्यन्त लम्बी है ।।२५॥ इस द्रवती विभङ्गा के पूर्व में एक आवर्ता नाम का महान और शाश्वत देश है, जिसके मध्य में अत्यन्त रम्य और कल्याणों की खान सदृश खड्मा नाम की नगरी है ।।२६।। उसके प्रागे (पूर्व में) नलिनकूट नाम का एक महान वक्षार पर्वत है, जो चाराटों से अञ्चित और स्वर्णमय जिन चैत्यालयों आदि से परिपूर्ण है ।।२७। उस वक्षार पर्वत का शिखर सिद्ध, पावर्ता, लाङ्गलावर्त और नलिन इन चार कूटों से समन्वित है ॥२८॥
अब इसके आगे-मागे के देश, विभङ्गा नदी और यक्षार पर्वतों का संक्षिप्त कथन करते हैं :--
ततोऽस्ति विषयो लांगलाबाह्वय कजितः। षट्खण्डमण्डितो युक्तो नदीकाननपर्वतः ॥२६॥ तन्मध्ये मगरीरम्या मञ्जूषाख्या विराजते । मजूषेव नृरत्नानां जिनकेवलिमिणाम् ॥३०॥ पुनः पवतीनाम्नी विभंगा प्रवरा नदी । दशक्रोशावगाहास्याद्रोहित्समानविस्तृता ॥३१॥