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नवमोऽधिकारः
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परित्याग से छठवें नरक को प्राप्त हुए ।। २६५-२६६ ।। अजितधर नाम का रुद्र पाँचवें नरक, जितनाभि और पीठ ये दो रुद्र चौथे नरक तथा सात्विकीतनय तीसरे नरक को प्राप्त हुए हैं। सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं संयम से विभूषित ये सभी तपस्वी ( रुद्र ) दीक्षाभङ्ग से उत्पन्न होने वाले पाप के समूह से ही इस प्रकार की दुर्गति को प्राप्त होते हैं, इसलिए मानता हूँ कि परी में दीक्षा भङ्ग बराबर महान् पाप, अपमान, निन्द्यपना एवं निर्लज्जता न कभी ( अन्य क्रियाओं से ) भूतकाल
थी, और न कभी भविष्यतकाल में होगी । त्रैलोक्य में बुद्धिमानों के द्वारा सारभूत प्रति दुर्लभ रत्न चारित्र ही माना गया है अतः प्रति निर्मल चारित्र के समीप स्वप्न में भी मल नहीं लाना चाहिए । अर्थात् ग्रहण किए हुए चारित्र में स्वप्न में भी दोष नहीं लगाना चाहिए ।। २६७ - २७१।। इन सभी रुद्रों को अनेक भवान्तरों के बाद प्राप्त किये हुए सम्यक्त्व के माहात्म्य से चारित्र होगा और चारित्र के द्वारा इन्हें निर्वाण की प्राप्ति होगी ॥ २७२ ॥
a नौ नारदों के नाम एवं उनका अन्य वर्णन संक्षिप्त में करते हैं। भीमायो महाभीमो रुद्रसंज्ञस्तृतीयकः ।
महारुद्राभिषः कालो महाकालश्चतुर्मुखः ॥ २७३ ॥ ततो नरमुखो नाम्नोन्मुखोऽत्र नारदा इमे । वासुदेवसमानायुः कायोच्चाः कलहप्रियाः || २७४ ॥ हिंसानन्दपरा नित्यं कदाचिद्धर्मवत्सलाः ।
जाता नवैव काले बलभद्रादित्रिभूभुजाम् || २७५ ॥
ते स नारदाः हिसानन्दोत्थ पापपाकतः ।
जग्मुः श्वभ्रं यथायोग्यमन्येषां कलियोजनात् ।। २७६ ।।
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ग्रर्थः - १ भीम, २ महाभीम, ३ रुद्र, ४ महारुद्र, ५ काल, ६ महाकाल, ७ चतुर्मुख, ८ नरमुख और उन्मुख (अधोमुख) नाम के ये है नारद हैं। इनकी आयु एवं शरीर का उत्सेध वासुदेव के सदृश ही होता है । श्रर्थात् भीम यादि नारदों की सायु ग्रथाक्रम से ८४ लाख वर्ष ७२ लाख वर्ष, ६० लाख वर्ष ३० लाख वर्ष, १० लाख वर्ष, ६५ हजार वर्ष ३२ हजार वर्ष, १२००० वर्ष और एक हजार वर्ष की हुई है। इसी प्रकार प्रथमादिक के क्रम से इनका उत्सेध क्रमशः ८०,७०,६०,५०,४५, २६, २२, १६ और १० धनुष प्रमाण था ।।२७३ - २७४ || ये सभी नारद कलह प्रिय होते हैं और नित्य ही हिसानन्द रौद्र ध्यान में संलग्न रहते हैं। ये कदाचिद् धर्मवत्सल भी होते हैं। ये सभी बलभद्र एवं त्रिखण्डी नारायण भादि के समय में ही उत्पन्न होते हैं 11२७५ || वे सभी नारद हिसानन्दी रौद्रध्यान से उत्पन्न हुए पाप के फल से तथा अन्य जीवों को युद्ध में संयुक्त कराते रहने से यथा योग्य (परिणामों के अनुसार ) नरकों में हो जाते हैं ।।२७६ ।।