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नवमोऽधिकारः
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अर्थः- (भविष्यतकाल में भी प्रथम चक्रबर्ती का नाम भरत ही होगा, इस प्रकार ) - १ भरत, २ दीर्घदन्त, ३ जयदत्त, ४ गूढदन्त, ५ श्रीवेण ६ श्रीभूति, ७ श्रीकीर्ति, पद्म, महापदा, १० चित्रबाहुन ११ विमलवाहन और १२ रिमेन नाम के ये द्वादश चक्रवर्ती प्रदुद्भुत पुण्य से युक्त और नरेन्द्रों, देवों एवं विद्याधरों से पूजित भविष्यतकाल में होंगे || ३४१ - ३४३ ।।
अब भविष्यकाल में होने वाले बलभद्र, वासुदेव और प्रतिवासुदेवों के नाम कहते हैं :
चन्द्राह्वयो महाचन्द्रस्ततश्चन्द्रधराभिधः ।
हरिचन्द्राख्यक: सिंहचन्द्राख्यो वरचन्द्रमाः || ३४४ ।। पूर्णचन्द्रः सुचन्द्राख्यः श्रीचन्द्रो भाविनोऽप्यमी । बलभद्रा नव ज्ञेया देवार्च्या ऊर्ध्वगामिनः ।। ३४५ ॥ नन्दी च नन्दिमित्राख्यो नन्दिषेणसमाह्वयः । नन्दिभूति नरेशोऽथ प्रतोतबल संज्ञकः || ३४६ ॥ ततो महाबलाभिख्योऽतिबलाख्यस्त्रिखण्डभृत् । त्रिपृष्टोऽथ द्विपृष्टोऽमी वासुदेवा नवस्मृताः ॥३४७॥ श्रीकण्ठो हरिकण्ठाख्यो नीलकण्ठोऽइचकण्ठकः । सुकण्ठः शिखिकण्ठश्च ततोऽश्वग्रीवसंज्ञकः ॥ ३४८ ।। हयग्रीवो मयूरग्रीवोऽमी खण्डश्रयाधिपाः । वासुदेवद्विषः सर्वे ज्ञातव्या नव भूतले ||३४६ |
शलाकाः पुरुषा एते खभूचरसुराधिपः ।
वन्द्याः पूज्यास्त्रिषष्टिश्च भविष्यन्ति जिनादयः || ३५०||
अर्थ :- भविष्यकाल में चन्द्र, महाचन्द्र चन्द्रघर, हरिचन्द्र सिंहचन्द्र, वरचन्द्र, पूर्णचन्द्र,
सुन्द्र और श्रीचन्द्र नाम के ये नौ बलभद्र, देवों से पूज्य और ऊर्ध्वगामी होंगे ||३४४-३४५ ।। इसी प्रकार आगामी काल में नन्दी, नन्दिमित्र, नन्दिषेण नन्दिभूत प्रतीतबल, महाबल, अतिजल, त्रिष्ट और द्विपृष्ठ ये नव नारायण होंगे || ३४६-३४७॥ इसी प्रकार तृतीय काल में श्रीकण्ठ, हरिकण्ठ, नील कण्ठ, प्रश्नकंठ, सुकण्ठ, शिखिकण्ठ, वो हयग्रीव और मयुरग्रीव ये नौ विंडरिति प्रतिवासुदेव होंगे | पृथ्वीतल पर ये नौ प्रतिनारायण नारायणों के रात्र होते हैं। ऐसा जानना ||३४८-३४६|| विद्याघरों, राजाओं और देवों द्वारा वन्दनीय एवं पुजनीय जिनेन्द्र आदि त्रेसठ शलाका के ये सभी महापुरुष भविष्यतकाल में होंगे || ३५० ।।