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सिद्धान्तसार दीपक
प्रब पञ्चमकाल का संक्षिप्त वर्णन करते हैं :
ततोऽत्र दुषमाकालः कृत्स्नदुःख निबन्धनः । एकविंशतिसंख्यानसहस्रयर्षसम्मितः ।।२७७।। अस्यादौ मानवाः सन्ति सप्तहस्तोच्चविग्रहाः । रूक्षकायाश्च विशत्यग्रवत्सरशतायुषः ॥२७॥ दिनमध्ये सकृद्वारमाहरन्त्यशनं जनाः ।
बलसरवसुबुद्ध घाद्योनाः केचिच्च संयुताः ।।२७६ ।। अर्शी-आर्य क्षेत्र में चतुर्थकाल की समाप्ति के बाद सम्पूर्ण दुःखों का निबन्धन करने (बांधने) वाला, २१००० वर्ष प्रमाग से युक्त दुखमा नामका पञ्चम काल प्रारम्भ होता है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों के शरीर को ऊँचाई सात हाथ प्रमा], तिरू और आयु १२० वर्ष की होती है। उस समय.मनुष्य दिन में अनेक बार भोजन करने वाले होते हैं। उस समय कोई कोई मनुष्य वल, सत्व और उत्तम बुद्धि के धारक होते हैं, किन्तु अधिकांशतः इनसे रहित ही होते हैं ।।२७७-२७६।।
प्रब शक राजा और प्रथम कल्को की उत्पत्ति का काल तथा कल्की का नाम एवं प्रायु प्रादि का कथन करते हैं :--
त्यक्त्वा सम्वत्सरान् पञ्चाधिकषट्शतसम्मितात । पञ्चपासयुतान मुक्ति वर्धमाने गते सति ।।२८०।। शकराजोऽभवत् स्यातस्ततोऽन्देषु गतेष्वपि । चतुर्नबतिसंयुक्तत्रिशतप्रमितेषु च ।।२८१।। सप्तमासाधिकेष्वासीत् कल्कीचतुर्मुखाह्वयः ।
वर्षसप्ततिजीवो सद्धर्मद्वेषोह चादिमः ।।२८२॥ अर्थ:--श्री वर्धमान स्वामी के मोक्ष जाने के ६०५ वर्ष ५ मास बाद शक राजा (विक्रमादित्य) हुया था, और शक राजा के ३६४ वर्ष ७ माह अर्थात् बीर भगवान के मोक्ष जाने के ६०५ वर्ष ५ मास + ३६४ वर्ष ७ माह =१००० वर्ष बाद चतुमुंख नाम का प्रथम कल्की उत्पन्न हुआ था। इसकी प्रायु ७० वर्ष प्रमाण थी । यह राजा जैन धर्म का अत्यन्त विद्वेषी था॥२८०-२८२।। अब प्रथम कल्को चतुर्मुख के और उसके पुत्र जयध्वज के कार्य कहते हैं :
सोऽन्यदाजितभूमि प्रधानाख्यमित्यमादिशत् । निर्ग्रन्थामुनयोऽस्माकमवश्याः सन्ति भूतले ॥२८३॥