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सिद्धान्तसार दीपक
भरत एवं पांच ऐरावत सम्बन्धी १० प्रायं खण्ड, इस प्रकार एक सौ सत्तर प्रायं खण्ड हैं, इनमें से एक एक आर्य खण्ड में एक-एक तीर्थंकर और एक-एक ही चक्रवर्ती उत्पन्न हों तो १७० हो सकते हैं । ।।१७१-१७२।। जघन्य रूप से सर्व क्षेत्रों में ( सर्वत्र ) मनुष्यों, देवों एवं विद्याधरों से पूजित तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती मात्र बीस हो सकते हैं। बीस से कम कभी नहीं होते ।।१७३॥
अब जम्बूनीपस्थ समस्त पर्वतों की एकत्रित संख्या कहते हैं।
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जम्बूद्वीपे
प चत्वारो गजदन्ताश्च द्वपष्टवक्षारभूधराः ॥१७४॥ श्रष्टौ विभगजशैलाः स्युश्चत्वारो यमकाद्रयः ।
चत्वारो नाभिलारच द्वेशते काञ्चनाद्रयः ।। १७५ ।। विजयार्थाश्चतुस्त्रिशत्तावन्तो वृषभाद्रयः ।
सर्वे पिण्डीकृता एते त्रिशतकादशोत्तराः ॥ १७६ ॥
अर्थ :- जम्बूद्वीप में एक सुदर्शनमेरु, छह कुलाचल पर्वत, चार गजदन्त, सोलह बक्षार पर्वत, श्राठ दिग्गज पर्वत, चार थमकगिरि, चार नाभिगिरि, दो सौ काञ्जव पर्वत, चौंतीस विजया और चौंतीस वृषभाचल पर्वत हैं। इन सबको एकत्रित करने पर जम्बुद्वीपस्थ ( १ +६+४+१६+८+ ४+४+२००+३४ + २४ = ) ३११ पर्वत होते हैं ।। १७४ - १७६ ।।
अब अवशेष द्वीपों के पर्वतों की संख्या कहते हैं :--
एतेभ्यो द्विगुणाः सन्ति मेर्वाद्या अद्वयोऽखिलाः । द्वीपे च घातकीखण्डे पुष्करार्थे तथापरे ।। १७७ ॥
अर्थ :-- धातकी खण्ड में श्रीर पुष्करार्धं द्वीप में मेस श्रादि पर्वतों की संख्या जम्बूद्वीप से दूनीदूनी है | अर्थात् धातकी खण्ड में ६२२ पर्वत और पुष्कराधं द्वीप में ६२२ पर्वत हैं ।। १७७ || ब जम्बूद्वीपस्थ वन, वृक्ष, सरोवर एवं महादेशों कराते हैं :--
श्रादि की संख्या का दिग्दर्शन
जम्बूद्वीपे वनेद्वेस्तो भद्रशालाह्वये परे ।
जम्बूशाहम लियुक्षौ च कुलाचलस्थ षट्वहाः ॥१७८॥ सीतासीतोदयोर्मध्ये ह्रवाः स्युविशति प्रमाः । जघन्यमध्यमोत्कृष्ट मेवैः षड् भोगभूमयः || १७६ ॥ चतुस्त्रिशन्महादेशा भरत रावतान्विताः । स्युर्नगर्यश्चतुरिंशदार्थखण्डान्तर स्थिताः ॥ १८० ॥