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सिद्धान्तसार बोषक
अर्थ. -- इसके बाद पल्य के ८०० भाग व्यतीत हो जाने पर एक भाग में क्षेमङ्कर नाम के प्रति निपुण मनु हुए, जो सुनन्दा स्त्री के स्वामी, उद्यमवान् और स्वर्णाभा के सह सुन्दर शरीर के धारक थे। इनके शरीर की ऊँचाई ८०० धनुष और श्रायु का प्रमाण पल्य के एक हजार भागों में से एक भाग ( ब००- पल्य ) था । इन्हीं मनु के जीवन काल में वहां रहने वाले मृग, शेर आदि काल दोष के प्रभाव से क्रूरता को प्राप्त हो गये तब उनकी बाधा को सहन करने में असमर्थ होते हुए प्रायें जन भय से शीघ्र ही क्षेमंकर के समीप जाकर अपनी बाबा नाश करने के लिये इस प्रकार उत्तम वचन बोलेहे प्रभो ! ये मृग, सिंह यादि पहिले भद्र परिणामी थे और हम लोगों के हाथों से इनका लालन पालन किया गया है, किन्तु श्राम ये क्रूरता को प्राप्त होकर हमें अपने नाखूनों से मारते हैं ।। ६२-६५ ।। उन आर्य जनों को प्रति उत्तर देते हुए मनु बोले- कि काल दोष के प्रभाव से इनके मनों में विकार उत्पन्न हो गया है, अतः इनको शीघ्र ही छोड़ देना चाहिए। ग्राम लोगों को अब इनका विश्वास नहीं करना ' चाहिए। इस प्रकार अपने कल्याण की शिक्षा आदि को सुनकर उन्होंने मनु को बहुत स्तुति।
की ।।६६-६७११।
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प्रजाजनों को प्रीति ( कल्याण ) के लिए उन्होंने भी "हा" दण्ड नीति का ही आदेश दिया। पुनः पल्य के आठ हजार ( ) प्रमाण भाग व्यतोस हो जाने पर अत्यन्त करुयारण करने वाले, बुद्धिमान् मन्धर नाम के कुलकर उत्पन्न हुए, जो विमला महादेवों के स्वामी और स्वर्ण सदृश आभा को धारण करने वाले थे ।। ६८-६६।। उनके शरीर की ऊँचाई ७७५ धनुष और श्रापत्य के दश हजार भागों में से एक भाग (पत्य) प्रमाण थी ॥७०॥ उस समय मृगादि पशु अत्यन्त क्रूरता को प्राप्त हो गये थे, अतः उन उत्तम बुद्धि को धारण करने वाले मनु ने लकड़ी प्रादि के द्वारा ताड़न आदि करने की शिक्षा देकर शीघ्र ही उनकी बाधा को दूर किया ||७१|| प्रजा के द्वारा किये हुए दोषों पर उन्होंने भी "हा" इस दण्ड नीति का प्रयोग किया। पल्य के अस्सी हजार भाग व्यतीत हो जाने के बाद मनोहारी स्त्री के प्रत्यन्त विद्वान पति सोमङ्कर नाम के मनु हुए। जिनके शरीर की ऊँचाई ७५० धनुष और कान्ति स्वर्ण के सदृश श्री ।।७२-७३ ॥ इनकी ग्रायु एल्य के एक लाख भागों में से एक भाग (पल्य ) प्रमाण थीं, तथा ये भी 'हा' दण्ड नीति का हो प्रयोग करते थे । आपके समय में जब कल्पवृक्ष विरले और मन्द फल देने वाले हो गये तब ग्रार्य जन परस्पर में बिसम्वाद करने लगे, उस समय आपने 'प्रजा के कल्याण के लिये उनकी यलग सोमा बांध दी थी ।।७४-७५।।
श्रम सीमत्थर ग्रादि चार कुलकरों के स्वरूप एवं कार्यों का वर्णन करते हैं :--
ततः पल्माष्टलक्षक भागे गतेऽभवन्मनुः ।
सीमन्धरोऽङ्गहेमाभोऽत्र यशोधारिणीप्रियः ॥ ७६ ॥