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नवमोऽधिकार :
[ २६७ नन्दी बलदेव का उत्सेध २६ धनुष और प्रायु ६७ हजार वर्ष, नन्दिमित्र का उत्सेध २२ धनुष और आयु ३७ हजार वर्ण, राम बलदेव का उत्सेध, १६ धनुष और प्राय १७ हजार वर्ष तथा नवमें बलभद्र पद्म का उत्सेध १० धनुष और पायु १२०० वर्ष प्रमाण थी ।।२०२-२०६॥
अब बलमद्रों के रत्न, अन्य सम्पदा, शरीर का वर्ण और प्राप्त होने वाली गति का दिग्दर्शन कराते हैं :--
गदा सद् रत्नमाला च मुशलं हलमूजितम् । सुररक्षाणि चत्वारीमानि रत्नानि सन्ति वै ॥२१॥ सर्वेषां बलभदाणा विध्यरूपाः स्त्रियोऽखिलाः । सहस्राटप्रमा अन्याः सम्पदः स्युश्च्युतोषमाः ।।२११॥ कुन्देन्दुवा दिव्याङ्गा धर्मशीलाः शुमाशया। बलेशाः सकला ज्ञेया निसर्गणोर्ध्वगामिनः ॥२१२॥ हलिनोऽष्टौ विजयाधास्तपोध्यानायुधबलात् । निहत्य कृत्स्नकर्माणि ययुर्मुक्ति सुखावनिम् ॥२१३॥ पदोऽन्तिमो गतो ब्रह्मस्वर्गसोऽप्यभरस्ततः ।
कृष्णं तीर्थेशमभ्येत्य मोक्षं यास्यति दीक्षया ॥२१४॥ अर्थ:-सर्व बलभद्रों के, देवों द्वारा रक्षित गदा, रत्नमाला, मुसल और उत्कृष्ट हल ये चार रत्ल, दिव्य रूप को धारण करने वाली पाठ-पाठ हजार रानियाँ तथा उपमा रहित और भो अन्य बहुत सम्पत्तियाँ होती हैं ॥२१०-२१११। सभी बलदेवों के दिव्य शरीर को प्राभा कुन्द पुष्प एवं चंद्रमा सदृश होती है । धर्म स्वभावो, शुभ चित्त वाले सभी बलदेवों की स्वभावतः ऊर्ध्वगति ही होती है। ॥२१२॥ विजयादि आठ बलभद्र तप एवं ध्यान रूपी शस्त्रों के बल से द्रव्य कर्म, भाव कम और नोकर्मों का नाश कर सुख की भूमि स्वरूप मोक्ष पद को प्राप्त हुए, अन्तिम बलभद्र पद्म ब्रह्मस्वर्ग में देव हुए हैं। कृष्ण नारायण का जीव जब तीर्थकर होगा तब ये भी दीक्षा धारण करके मोक्ष प्राप्त करेंगे ।।२१३-२१४॥ अब बलभत्रों का वर्तना काल दर्शाते हैं :
श्रेयप्तो वर्तमानेऽत्र कालेऽभूहिजयो बलः । वासुपूज्य जिनेशस्या चळः काले प्रतिनि ॥२१॥ बभूव वर्तमानस्य विमलस्य जिनेशिनः । काले धर्मोऽप्यनन्तस्य वर्तमाने च सुप्रभः ॥२१६॥