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नवमोऽधिकार :
venteenrict कभागेऽतीते ततोऽभवत् ।
प्रभिचन्द्रो मनुर्ज्ञानी श्रीमतीकान्त जन्नतः ॥ ६१॥ पञ्चविंशतिसंयुक्तं चापः षट्शत सम्मितः । पल्यकोटिसहस्र कमागायुः कनकच्छविः ॥ ६२ ॥ चन्द्रादिदर्शने रात्रौ चिरजीविप्रजात्मनाम् । सुनोर्वोदय मुखं प्रोत्ये क्रीडनं वचसादिशत् ||६३॥ तेन तत्कृतनामासोद्धा -मा-नीतिविधि व्यधात् । पल्यस्याष्टसहस्रप्रमकोटचं कप्रमाणके ॥६४॥ गते नागेोऽभूचन्द्रामरचन्द्रवर्णवान् । प्रभावतीप्रियस्तुङ्गो दः षट्शतसंस्थः ॥६५॥ पत्यस्य दशसहस्रकोट 'कांशाहनजीवितः । प्रार्याणां कृलदोषाणां हा मा धिक्कारदण्डकृत् ॥ ६६ ॥
तवासौ स्वगिश दक्षः पितॄणां चिरजीविनाम् । व्यवहारं व्यधात् प्रीत्यं पितृपुत्रादिकल्पनः ॥६७॥
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अर्थः- तत्पश्चात् पल्य के आठ सौ करोड़ भाग व्यतीत हो जाने के बाद श्रीमती कान्ता के पति ज्ञानवान् एवं श्रेष्ठ मनु अभिवन्द्र उत्पन्न हुए ॥ ६१ ॥ इनको ऊंचाई ६२५ धनुष, आयु पल्य के हजार करोड़ भागों में से एक भाग (पल्य ) प्रमाण एवं शरीर की कान्ति स्वर्णाभा सदृश थी ||२|| सार्थक नाम को धारण करने वाले इन कुलकर ने अपनी वाणी द्वारा बहुत काल तक जीवित रहने वाली अपनी प्रजा को रात्रि में चन्द्रमा श्रादि के दर्शन द्वारा अर्थात् अपने बालकों को चन्द्रमा दिखा दिखा कर प्रीति पूर्वक उनका मुख देख कर क्रीड़ा कराने ( रमाने) का उपदेश दिया ||२|| इनके द्वारा भी "हा मा" दण्ड नोति का ही विधान किया गया था। पश्चात् पल्य के श्राठ हजार करोड़ प्रमाण भाग बोल जाने पर यहां चन्द्रमा की कान्ति को धारण करने वाले प्रभावती प्रिया के स्वामी चन्द्राभ नाम के मनु हुए। इनके शरीर को ऊँचाई ६०० धनुष प्रमाण और भ्यु पत्य
दश हजार करोड़ भागों में से एक भाग (पत्य ) प्रमाण थी। दोष करने वाले आर्यों को ये हा मा और धिक्कार का दण्ड देते थे ||६४-६६ ॥ उस समय आपने अपने वचनों द्वारा बहुत काल तक जीवित रहने वाले गाता पिता को पिता पुत्र आदि के सम्बन्ध की कल्पना द्वारा प्रीति पूर्वक व्यवहार करने का उपदेश दिया ॥६७॥