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अष्टमोऽधिकारः
श्राचार्याः पाठकाये गुणगणनिलयाः साधवः साधितार्था
स्ते सर्वे सङ्गृहीना निजगुणगतये वन्चिताः सन्तुमेऽद्य ॥ १६१ ॥
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इति श्रीसिद्धान्तसार दीपक महाग्रत्थे मट्टारक श्रीसकलकीर्ति विरचिते विदेहाऽखिलदेशादिवर्णनोनामाष्टमोध्याय ॥८॥
अर्थ:- विदेह क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले, जगत का सर्वोपरि हित करने वाले और देवसमूह से ग्रचित तीर्थंकर देव, कर्म और शरीर को नाश करके मोक्ष प्राप्त करने वाले ज्ञानशरीरी सिद्ध परमेष्ठी, गुणसमूह के श्रालय श्राचार्य और उपाध्याय परमेष्ठी तथा मोक्ष प्राप्ति का साधन करने वाले समस्त निर्ग्रन्थ साधु जो कि आज मेरे द्वारा वन्दित हैं, वे सब मेरे निजगुणों की प्राप्ति के लिये हों । अर्थात् मुझे मोक्षगति प्राप्त करने में सहायक हों ॥। १६१ ।।
इस प्रकार भट्टारक सकलकीति विरचित सिद्धान्तसारदीपक नाम महाग्रन्थ में विदेहक्षेत्रस्थ सम्पूर्ण देशों यादि का वर्णन करने वाला
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