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अष्टमोऽधिकारः
तस्याः पूर्वे महावप्राभिधो देशः शुभाकरः । शुभमराव सतां शुभप्रवर्तनः ।। १२० ।। तन्मध्ये नगरी भाति जयन्ती संज्ञिका परा । जिनेन्द्रापरधामौघैः पुण्यवद्भिर्जयोद्धतेः ॥१२१॥
अर्थ:-सुखावह वक्षार पर्वत के पश्चिम में सरिता नाम का एक महान श्रेष्ठ देश है, जहाँ पर जिनेन्द्र भगवान की पूजा भक्ति के लिये निरन्तर देवगण आते रहते हैं। इस देश के मध्य में वीतशोका नाम की नगरी है, जहाँ पर बुद्धिमान् जीव शोक से रहित होते हैं, श्रोर स्वगं एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिये सदा उत्तम धर्म का आचरण करते हैं ।। १०७-१०८ || सरिता देश के धागे कञ्चनमय, अत्यन्त र और श्रेष्ठ वेदिका है, जिसके व्यास आदि का प्रमाण पूर्व कथित वेदिका के व्यास, आयाम और ऊँचाई के सदा है ||१०६ ।। इस वेदी के पश्चिम में भूतारण्य नाम का उत्तम वन है, जो देवारण्य के सहरा जिनचैत्यालयों और देवों के नगरों से संयुक्त है ।। ११० ।। इस वन को उत्तर दिशा में जिन चैत्यालयों से युक्त तथा प्रासादों से संयुक्त देवों के नगरों से समन्वित अन्य भूतारण्य वन है ॥ १११ ॥ इस भूतारण्य वन की पूर्व दिशा में सोतोदा महानदी के उत्तर तट पर श्रीर नोल कुलाचल के दक्षिण भाग में एक रत्नमय वेदिका है ।। ११२|| इस बेदी की पूर्व दिशा में कुलिङ्गी साधुओं आदि से रहित और उनम मुनिगरणों, श्रावकों एवं जिनचैत्यालयों से परिपूर्ण वप्रा नाम का देश है । जिसके मध्य में विजया नाम की अति रम्य नगरी हैं, जहां पर मोक्षाभिलाषी भव्यजन मन-वचन और काय की स्थिरता द्वारा अथवा ध्यान प्रादि के द्वारा दुष्ट कर्मी इन्द्रियों और कषाय रूपी वैरियों को जीतते हैं ।। ११३११४।। इस वत्रा देश के पूर्व में स्वर्णाभा के समय कान्तिवान् चन्द्रा नाम का वनार पर्वत है, जो जिनचैत्यालय और देवालयों से समन्वित चार कूटों से सुशोभित है। इसके शिखर पर सिद्धकूट, वत्रा, मुत्रप्रा और चन्द्रकूट नाम के चार उत्तम कूट हैं ।। ११५ ११६ ॥ इस वक्षार के पूर्व में सुवप्रा नाम का रम्य र श्रेष्ठ देश है, जहाँ पर अरहन्त देव, गणबर देव और मुनि समूह निरन्तर बिहार करते हैं | इस देश के आर्य खण्ड में विजयन्ती नाम की श्रेष्ठ नगरी है, जहां के उन्नत भवनों में विजय स्वभात्री भव्य जोन रहते हैं ।। ११७-११८ ।। इसके बाद गम्भीरमालिनी नाम की श्रेष्ठ त्रिभंगा नदी है, जो नील कुलाचल के अधोभाग में स्थित कुण्ड से निकली है, और सीतोदा के मध्य प्रवेश करती हे ।। ११६ | इसके पूर्व में उत्तम ग्राम नगर यादि से युक्त और सज्जनों की शुभ प्रवृत्तियों से सुशोभित पुण्य की खान सदृश महावप्रा नाम का उत्तम देश है । जिसके मध्य में जयन्ती नाम की उत्तम नगरी शोभायमान होती है, जो जिन चैत्यालयों, अन्य प्रासाद समूहों, पुण्यवान् भव्य जीवों एवं जितेन्द्रिय जीवों से सदा परिपूर्ण रहती है ।।१२०-१२१॥
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अब पूर्वविदेहगत वक्षार पर्वतों आदि की अवस्थिति कहते हैं।
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