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अष्टमोऽधिकारः
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पब कुण्डों का ध्यास एवं गहराई कहते हैं :
द्वादशप्रमकुण्डानां विमङ्गोत्पत्तिकारिणाम् । योजनानां शतं व्यासः पञ्चविंशतिसंयुतम् ॥१४३॥ सर्वत्र चावगाहो योजनविंशतिसम्मितः ।
महातस्तोरणद्वारवेशाचाः सन्ति शाश्वताः ॥१४४॥ अर्थः--बारह विभङ्गा नदियों की उत्पत्ति के कारण भूत बारह कुण्डों का व्यास एक सौ पच्चीस ( १२५ ) योजन प्रमाण है और प्रवगाह सर्वत्र बीस योजन प्रमाण है। वे कुण्ड अनाद्यनिधन और विशाल तोरण द्वारों एवं वन वैदियों से युक्त हैं ॥१४३-१४४।। अब विभंगा नदियों का मायाम कहते हैं :--
विषप्रमविभङ्गानामायामः प्रोक्तिः श्रुते ।
कुण्डव्यासोनवेशायामेन सादृश्य प्राश्रितः ॥१४५॥ द्वादशविभङ्गानदीनां प्रत्येकंदीर्घताषोडशसहस्रचतुःशतसप्तषष्टि योजनानि योजनकोनविंशभागानां द्वे कले।
अर्थः-देश के आयाम ( १६५६२ यो ) में से कुण्ड का ध्यास ( १२५ यो० ) घटाने पर जो प्रमाण ( १६५६२-१२५= १६४६७१ यो ) रहता है, उसी के सदृश प्रत्येक विभङ्गा नदियों का आयाम आगम में कहा गया है ॥१४५।।
बारह विभाडा नदियों में से प्रत्येक विभक्षा की दीर्घता ( लम्बाई ) सोलह हजार चार सौ सड़सठ योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण अर्थात् १६४६७० योजन है। अब विदेहस्थ रक्तादि ६४ नदियों का मायाम कहते हैं :--
चतुःषष्टिप्रमाणानां रस्ताविसरितां स्फूटम् ।
स्वकुण्डविस्तरोनोयो देशायामः स एव हि ॥१४६॥ रक्तारक्तोदागङ्गासिन्धुसंज्ञानां चतुःषष्टिनदीनामायामः प्रत्येकं षोडशसहस्रपञ्चशतकोनत्रिशयोजनानि द्वौ क्रोशी योजनकोनविंशति भागानां द्वौ भागौ ।।
अर्था:--विदेहस्थ गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा इन ६४ नदियों में से प्रत्येक के आयाम का प्रमाण अपने-अपने कुण्ड के विस्तार ( ६२३ यो०) से हीन देश के प्रआयाम ( १६५६२-६२३= १६५२६ योजन और दो कोश ) प्रमाण ही है ॥१४६।।