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सप्तमोऽधिकार:
[२०३ मध्ये पञ्चद्रहाः सन्ति श्रोपमहद सन्निभाः। शतपंचप्रमर्योजनरन्तरान्तरस्थिताः ॥६॥ ह्रदोनोलाह्वयोऽत्राधस्तथोत्तरकुरुद्रहः । चन्द्र ऐरावतो माल्यवानेतन्नामसंयुताः ॥६६॥ सीतामध्यस्थिता एते शेयाः पंचद्रहाः शुभाः । देवी नीलकुमारी चोत्तराद्यन्तकुमारिका ॥७॥ चन्द्रकुमारिकार्थरावत कुमारिका तथा । माल्यवतोति नामादया पंच नागकुमारिका ॥१॥ पुण्यलक्षणभूषाड्या वसन्ति पुण्यपाकतः ।
द्रहस्थपनगेहेषु स्वपरिवारवेष्टिताः ॥७२।। अर्थ:-यमकगिरि से पांच सौ योजन जाकर उत्तरकुरु भोगभूमि स्थित सीता सरितु के मध्य में पद्महद के सरश पाँच द्रह हैं। ये पांचों द्रह पांच पांच सौ योजन के अन्तराल से स्थित हैं, तथा नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्रद्रह, ऐरावत ह और मकान मा संयुक्त हैं . ये सुग पाँचद्रह सोता नदी के मध्य में स्थित हैं, ऐसा जानना चाहिये। इन पांचों द्रहों में स्थित कमलों पर निर्मित प्रासादों में अपने अपने परिवारों से वेष्टित और पूर्वोपाजित पुण्य के फल से शुभ लक्षण और शुभ वस्त्राभूषणों से अलंकृत नीलकुमारी, उत्तर (कुरु) कुमारी, चन्द्रकुमारी, ऐरावत कुमारी और माल्यवती नाम की पाँच नागकुमारियाँ क्रमशः निवास करती हैं ॥६७-७२।। अब सीतोदा नदी स्थित पाँच द्रहों का वर्णन करते हैं :
त्यक्त्वान्यौ यमकानी योजनपंचशतान्तरम् । स्यु हाः पंचसीतोदामध्ये देवकुरुक्षितौ ॥७३॥ प्रथमो निषधाभिस्यो ततो देवकुरुद्रहः । सूर्याख्यः सुलसो विद्युत्प्रभ इत्यायनामकाः ।।७४।। शेया: पंचद्रहा रम्याः समाः श्रीलदवर्णनेः। निषधादिकुमारोदेवादिकुरुकुमारिकाः ॥७५।। देवी सूर्यकुमारी सुलसा विद्युत्प्रमाह्वया । वसन्तिब्रहगेहेषु पंचेमा नागकन्यकाः ॥७६।।