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२.२८ ].
सिद्धान्तसार दीपक
प्रादिमं च सुसंस्थानं चतुःषष्टिसुलक्षणः । व्यञ्जनं बहुभिर्युक्त हेमाभं च च्युतोपमम् ॥२३४॥ षट्खण्डवासिभूपानां पिण्डीकृतं हि यबलं । ततोऽधिकं महावीर्यं चक्रिणः स्यान्निसर्गतः ॥ २३५॥ स्युर्द्वात्रिशरसहस्राण्याखण्डस्थ नृपात्मजाः । तावत्यो वररूपाश्च म्लेच्छराजसुताः शुभाः ॥ २३६॥ तत्प्रमाः खचराधोशपुग्यो विद्याकलाविताः । नाटकाः शर्मंदा द्वात्रिंशत्सहस्रप्रभाः शुभाः ॥ २३७॥ स्थास्यः स्वर्णमयाः कोटिप्रभा प्रस्य महानसे । स्यादेककोटिलक्षश्च हलानां पामरैः समम् ॥ २३८ ॥ ffers व्रजकोटोsस्य गोकुलैः संकुलाः शुभाः । श्रष्टादश सहस्राश्च म्लेच्छ राजानमन्ति तम् ॥ २३६ ॥
अर्थ : - चक्रवर्ती के पर्वत की उपमा को धारण करने वाले चौरासी लाख हाथी और दो-दो जोड़ों से युक्त तथा रम्य चौरासी लाख ही रथ होते हैं । अठारह करोड़ शीघ्रगामी घोड़े और द्रुतगामी चौरासी करोड़ पदाति होते हैं ।। २३१-२३२ || वज्रमय वाणों से अभेद्य, सन्धि रहित, वज्रमय अस्थि एवं वज्रवलय वेष्टित चक्रवर्ती का शरीर अत्यन्त सुन्दर, समचतुरस्त्र संस्थान, चोंसठ उत्तम लक्षणों और अनेकों व्यञ्जनों से युक्त, हेम वर्ण एवं उपमा रहित होता है ।। २३३ - २३४ ।। छह खण्डवर्ती समस्त राजानों के बल को एकत्रित करने पर जो बल होता है उससे भी अधिक बल अर्थात् महावीर्य चक्रवर्ती के स्वभावतः होता है ॥ २३५॥ भार्य खण्डस्थ राजाओं की बत्तीस हजार कन्याएँ. अनुपम रूप एवं शुभ लक्षणों से युक्त म्लेच्छ राजाओं की बत्तीस हजार कन्याएँ तथा विद्याओं एवं कलाओं से समन्वित विद्याधरों को बत्तीस हजार कन्याएँ अर्थात् चक्रवर्ती के छ्यान्नवे हजार रानियाँ होती हैं। सुख उत्पन्न करने वाले शोभनोक बत्तीस हजार नाटकगरण, रसोई गृह में स्वर्णमय एक करोड़ प्रमाण थालियाँ अथवा इण्डियाँ होती हैं । एक लाख करोड़ किसानों के साथ साथ एक लाख करोड़ प्रमाण ही हल होते हैं । नाना वर्णों की अत्यन्त शुभ लक्षण वाली गायों से भरे हुये तीन करोड़ व्रज होते हैं और चक्रवर्ती को अठारह हजार म्लेच्छ राजा नमस्कार करते हैं ।।२३६-२३६||
चक्रवर्ती को नौ निधियों के नाम, कार्य एवं उनके प्राकार श्रादि का सविस्तर वर्णन करते हैं :---