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सिद्धान्तसार दोपक स्थित गुफा की देहली के नीचे से जाती हुई गुफा में प्रवेश करती हैं । गुफा के भीतर इन सरिताओं का विस्तार हानि-वृद्धि से रहित सर्वत्र समान रूप से प्राट योजन प्रमाण जानना चाहिये । इसके बाद मन को हरण करने वाली ये दोनों नदियाँ क्रमश: साढ़े बासठ योजन विस्तार और पाँच कोस के अवगाह को प्राप्त होती हुई, दोनों पार्वभागों में महान् वेदियों. वनों एवं तोरणों से विभूषित और अनाद्यनिधन सीता-सीतोदा की वेदियों के तोरण द्वारों से होती हुई सोता-सीतोदा में प्रवेश करती है। इन दोनों में से प्रत्येक को वन वेदो प्रादि रो अलंकृत चौदह-चौदह हजार परिवार नदियाँ हैं ।।१३१-१३६।। अब सीता सीतोदा के तोरणों एवं गोपुरों के प्रायाम प्रादि का वर्णन करते हैं:
सीतायास्तोरणद्वारयोरायामः प्रथग्विधः । सार्धद्विषष्टिसंख्याति योजनानि तथोन्नतिः ॥१३७।। योजनानां च पादोनचतुर्नवतिसम्मिता। अर्धयोजनविस्तारो बह्वयो, जिनेन्द्रमूर्तयः ॥१३८॥ तयोर्गोपुरयोर्मूनि स्युः पुराणि सुधाभुजाम् । युक्तानि बनवेद्याधस्तुङ्गधामजिनालयः ।।१३।। इत्येषा वर्णना सर्वा ज्ञातव्या सदृशो बुधैः । चतुःषष्टिनदीनां चावगाहाविस्तरादिभिः ॥१४०।। सीतासोतोदयोनंद्योरािणां तटयो योः ।
चतुःषष्टिप्रमाणानां सरित्प्रवेशवायिनाम् ॥१४१।। अर्थः -सीता और सोतोदा के तोरण द्वारों का पृथक्-पृथक् आयाम साढ़े बासठ योजन, ऊँचाई एक पाद से कम चौरसन्नवे ( ६३३ ) योजन और नींव अर्ध योजन प्रमाण है। इन दोनों नदियों के गोपुरों के ऊपर अत्यधिक जिनेन्द्र मुर्तियाँ और देवों के नगर हैं, वे नगर उत्तम जिनालयों, उन्नत प्रासादों, वनों एवं वेदियों आदि से संयुक्त हैं ।।१३७-१३६॥ सीता-सीतोदा नदियों के दोनों तटों पर स्थित नदियों को प्रवेश देने वाले चौंसठ (प्रकोमा) द्वारों का तथा गंगा-सिन्धु ( ३२) और रक्ता-रक्तोदा (३२) इन ६४ नदियों के विस्तार एवं अवगाह यादि के प्रमाण का समस्त वर्णन विद्वानों के द्वारा इसके सहश हो जानने योग्य है ।।१४०-१४१॥
अब कच्छादेश का छह खण्डों में विभाजन, प्रार्य खण्ड की स्थिति और म्लेच्छ खण्डों का स्वरूप कहते हैं:--
विजयार्धाद्रिणा रक्तारक्तोदाभ्यां बभूव च । कच्छादेशः सषट्खण्ड प्रायकम्लेच्छपञ्चभृत् ।।१४२।।