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पञ्चमोऽधिकारः
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सुवर्णकूला नदी का वर्णन :
सुवर्णकूला नाम की नदी शिखिरिन् पर्वतस्थ पुण्डरीक सरोवर के दक्षिण द्वार से निकल कर पति के तट पर स्थित प्रणालिका द्वारा १०० योजम मोटी पारा से दुग्ध में गिरती है. मरचात् उस कुण्ड के दक्षिणद्वार से निकल कर हैरण्यवत् क्षेत्र के मध्य में जाकर वहाँ स्थित (गन्धवान् ) नाभि गिरि को अयोजन दूर से ही छोड़ती हुई उसकी अर्थ प्रदक्षिणा करके पूर्णसमुद्र में प्रविष्ट हो जाती है।
रूप्यकूला नदी :
रूप्यकूला नाम की नदी रुक्मि पर्वतस्थ महापुण्डरीक सरोवर के उत्तरद्वार से निकलकर २०० योजन ऊँची पत के तट पर स्थित प्रणालिका द्वारा रूप्य कुराड में गिरती है। पश्चात् उस कुण्ड के उत्तर द्वार से निकल कर हैरण्यवत नाम की जघन्य भोगभूमि क्षेत्र के मध्य में जाकर वहां स्थित (विजया) नाभि गिरि को प्रयोजन दूर से ही छोड़कर उसकी अर्धप्रदक्षिणा करती हुई पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती है । इस हैरण्यवत् क्षेत्र में पूर्व में कहे हुये सरोवर के नदी निर्गमद्वार को भादि लेकर समुद्र के नदी प्रवेशद्वार पर्यन्त समस्त व्यास श्रादि हैमवतु क्षेत्र के समान जानना चाहिये । एका नवी :
शिखरिन् पर्वतस्य पुण्डरीक सरोवर के पूर्वद्वार से निकल कर शिखरी पर्वत पर पूर्वाभिमुख ५०० योजन जाकर रक्ता कूट को अर्थ योजन दूर से ही छोड़कर दक्षिण दिशा में उसी पर्वत पर अकोस अधिक ५०० योजन आगे जाकर पर्वत के तट पर स्थित प्रणालिका द्वारा रक्ता कुण्ड में गिरती है | पश्चात् उस कुण्ड के दक्षिण द्वार से निकल कर बिजया के गुफा द्वार के देहली के नीचे प्रवेश करती हुई दक्षिण ऐरावत क्षेत्र के प्रभाग पर्यन्त दक्षिण में हो जाती है, पश्चात् पूर्व की ओर मुड़ कर अपने प्रवेश द्वार से पूर्व समुद्र में प्रवेश कर जाती है।
रक्तोदा नदी :
रक्तोदा नदी उसी शिखरिन् पतस्थ पुण्डरीक सरोवर के पश्चिम द्वार से निकल कर उसी पर्वत पर पश्चिमाभिमुख ५०० योजन जाकर रक्तोदा कूट को श्रर्व योजन दूर से ही छोड़ती हुई तट के ऊपर स्थित प्रणाली द्वारा भूमि पर स्थित रक्तोदा नामक कुण्ड में गिरती है । पश्चात् उस कुण्ड के उत्तर द्वार से निकल कर विजयार्ध के गुफा द्वार की देहली के नीचे प्रवेश करती हुई उत्तर ऐरावत क्षेत्र के मध्यभाग पर्यन्त उत्तराभिमुख हो जाती हुई पुनः पश्चिमाभिमुख होकर अपने प्रवेश द्वार से पश्चिम समुद्र में प्रवेश कर जाती है ।