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सिद्धान्तसार दीपक
की मूल नदियां ० हैं । यथा - गंगादि महानदियां १४+ विभंगा नदियां १२ + विदेहजगंगादि
६४=६० |
जम्बूद्वीपस्थ उपर्युक्त समस्त मूल और परिवार नदियों का एकत्रित योग करने पर १७९२०९० प्राप्त होता है। इसका विवरण निम्न प्रकार है
जम्बूद्वीपस्थ भरत रेगवत श्री हरि क्षेत्र
गपदियों का परिवार ९६६००० है | विदेहज सौता - सीतोवा का परिवार १६८०००, १२ विभंगा का ३३६०००, विदेह के ३२ क्षेत्र सम्बन्धी ३२ गंगासिन्धु और ३२ रक्ता रक्तोदा इस प्रकार ६४ की ६६६००० परिवार नदियां तथा रम्यक, हैरण्यवत् और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी नारी नरकान्ता आदि ६ की परिवार नदियाँ १९६००० है । इन सब का कौर मूल नदियों का समस्त योग (१६६००० + १६८०००+ ३३६०००+ ८१६०००+१६६०००+ ६० ) = १७६२०६० होता है । भढ़ाई द्वीप में पांच मेरु पर्वत हैं, इसलिये इस योग को ५ से गुणित करने पर ढ़ाई द्वीपस्थ समस्त नदियों का (१७६२०६०४५) - ८६६०४५० प्रमाण प्राप्त होता है ।
समस्त नदियों की वेदिका आदि का वर्णन :
सर्वासां सरितां सन्ति रत्नसोपानपंक्तयः । उभयोः पार्श्वयोर्नानाद्र ुमवल्लीवनानि च ॥ ५६ ॥
जिनेन्द्रप्रतिमारनद्वारतोरण भूषिताः ।
द्विक्रोशप्रोन्नता दिव्या कोशांहि व्यास वेदिका ॥ ५७ ॥
अर्थ :- समस्त नदियों में पंक्तिबद्ध रत्नों की सीढ़ियां हैं तथा सरिताओं के दोनों पार्श्वभागों में नाना प्रकार के वृक्षों एवं वल्लियों से युक्त वन हैं। इनके तोरणद्वार रत्नमय प्रतिमाओं से विभूषित हैं, और इनके दोनों पार्श्वभागों में दो कोस ऊँची और सवा कोस चौड़ी बेदिकाएँ हैं ।।५६ – ५७ ॥
भव विजयार्थं पर्वत की स्थिति और उसके व्यास श्रादि का निर्धारण सात श्लोकों द्वारा करते हैं :
प्रथास्ति विजयार्धाद्रिमध्येऽस्य भरतस्य च । श्वतरत्नमयस्तुङ्गः पञ्चविशतियोजनः ॥ ४८ ॥ पञ्चाशद्योमनरेष विस्तृतो भूतले ततः । उभयोः पादयोर्मु वरचा दशास्य योजनानि च ॥५६॥