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तृतीयोधिकारः
अधोगत्येनसां हंतीन स्वर्भुक्तिमुक्तिकारकात् । जगद्धितान् जिनान् वन्वे तद्गश्यं धर्मचक्रिणः ॥ ११ ॥
मङ्गलाचरण :—
श्रर्थः - अधोगति के जनक पापाचरणों को नाश करने वाले, स्वर्ग एवं मोक्ष सम्पदा प्राप्त कराने वाले, जगत् हितकारक, धर्मचक्रवर्ती जिनेन्द्र भगवान् को मैं उनकी गति - मोक्ष की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता है | ११
अधिकार लिखने की प्रतिज्ञा एवं उसका कारण :
अथ वक्ष्ये स्वरूपादीन दुःखौघाम्यशुभानि च । श्वस्त्रेषु नारकाणां कुरापिनां भीतिहेतवे ॥२॥
अर्थ ::- अब मैं पापी जीवों को भय उत्पत्ति के हेतु नरक बिलों में रहने वाले नारकी जीवों का दुःखसमूह से युक्त और महा अशुभ स्वरूप आदि कहूँगा ||२||
वहाँ के बिलों का स्वरूप :
घनवाऽशुभा भित्तिभागा व्ररणसमानकाः ।
वृत्त त्रिचतुरस्त्राविनानाकाराः शुभातियाः ||३|| बन्दोगेहाविकाती बीभत्सास्तासु भूमिषु । farayatnagar बिलौघाः सन्ति भीतिदाः ||४||
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अर्थ:- शरीर में उत्पन्न हुये धरण ( घाव या फोड़े ) के सदृश (मुख सकरा भीतर चौड़ा) वहां के बिलों की भूमियां एवं दीवालें वस्त्र के समान कठोर और अशुभ हैं, जो गोल त्रिकोण एवं चतुष्कोण आदि नाना प्रकार के श्राकार वाली हैं। तथा वहां के विल यहां के कारागृहों से भी अति अधिक ग्लानि युक्त सम्पूर्ण दुःखों के स्थान और भय उत्पन्न कराने वाले हैं ।। ३-४ ॥
नरक भूमियों का स्पर्श एवं दुर्गन्ध का कथन :