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क्रमांक
४
११२ ]
सिद्धान्तसार दीपक
लक्ष्मो परिवारसुरसद्मस्थगृहाणां प्रयामीऽर्वक्रोशोऽस्ति । व्यासः क्रोशचतुर्थांशः । उत्सेधः क्रोशाष्ट भागानां श्रयभागाः। ही बुद्धि परिवारदेवाजस्थगृहाणां दीर्घता एकक्रोशः । विष्कम्भोऽक्रोशश्च । उन्नतिः पादोनक्रोशः स्यात् । वृति की तिपरिवारा मराम्बुजस्थसौधानामायामः द्वो कोशी, विस्तारः एकः क्रोशः, उत्सेधः सार्ध कोशश्च ॥
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विशेषार्थ:- उपर्युक्त गद्यभाग में श्री आदि छह देवकुमारियों के परिवार देवों के कमल, करिका और कमल पत्रों का तथा उन कमलों पर स्थित उनके भवनों के व्यास श्रादि का प्रमाण दर्शाया गया है, जिसके सम्पूर्ण अर्थ का समावेश निम्नांकित तालिका में है परिवार कमल यादि के एवं भवनों के व्यास आदि का प्रमाण :
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श्री देवी
हो देवी
३ वृति देवी
कीति देवी
बुद्धि देवी
लक्ष्मी देवी
देव कुमारियों के नाम
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कमन का व्यास
दो कोस
१ योजन
२ योजन
२
१
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करिंका का कमल पत्र का
व्यास
आयाम
३ कोस | है कोस
१
२
२
१
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17
३
३
11
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33
पीन
दीर्घ एवं लघु भवनों की मुखदिशा का वर्णन :
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सम्बाई
१
२
२
१
कोस
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12
12
21
परिवार भवनों की
१
चौड़ाई
कोस
एते महागृहारम्या उक्तसंख्या बुधैः स्मृताः ।
एतेभ्यो बहवोऽन्येऽत्र ज्ञातव्याः क्षुल्लकालयाः ।। १०२ ।। सर्वे स्युरुत्तमा मेहाः पूर्वाभिमुख शाश्वताः । तेषामभिमुखा मन्ये सन्ति जघन्य सद्गृहाः ॥ १०३॥
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ऊंचाई
१३
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कोस
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: - इस प्रकार विद्वानों के द्वारा श्री देवी के परिवार महागृहों की संख्या १४०११५ कही
अर्थ:गई है। इन महागृहों से भिन्न और लघुग्रह भी अनेक हैं, ऐसा जानना चाहिये। ये सर्व महागृह शाश्वत