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सिद्धान्तसार दीपक
हरिकान्ता, सोतोदा, नरकान्ता, रूप्यकृला और रक्तोदा ये सात नदियां पश्चिम लवण समुद्र गिरती हैं ।
हों की वेदिकाओं का प्रमाण कहते हैं :
तेषां च षड्द्रहाणां स्यात् सर्वत्र रत्नवेदिका ।
तटे क्रोशद्वयोसुङ्गा क्रोशंकपादविस्तृता ||५||
अर्थः- - उन पद्म श्रादि छह द्रहों के तट पर चारों ओर रत्नवेदिका है, जो दो कोस ऊँची और सवा कोस चौड़ी है || ४ ||
अब गङ्गा प्रादि के निर्गमद्वारों का सविशेष वर्णन करते हैं :
पद्महस्य पूर्वस्मिन् दिग्भागे तोरणान्वितम् वज्रद्वारं भवेत्क्रोशाग्रषड्योजन बिस्तृतम् ॥६॥ उनतं साधेगव्यूति संयुक्तनव योजनैः । द्वारस्य तोरणं ज्ञेयं जिनबिम्बाधऽलङ्कृतम् ॥७॥ पूर्ववत्पश्चिमद्वारं ह्रवस्यास्य समानकम् । शेषद्विद्विमदीनां सोतोदान्तानां भवन्ति च ॥८॥
हरस्थनिर्गमद्वार व्यासार्थं द्विगुणोत्तराः । नार्यादिवाहिनीनां स्युः क्रमह्रासास्ततोऽखिलाः ॥६॥
अर्थः-- पद्मसरोवर की पूर्व दिशा में गङ्गा नदी को निकलने के लिये तोरण से संयुक्त एक मय द्वार है, जो ६ योजन एक कोश अर्थात् सवा छह (६३) योजन चौड़ा और १ योजन १३ कोस ऊँचा है । इस द्वार का तोरण जिनबिम्ब और दिक्कन्याओं के श्रावासों से अलंकृत है ॥६-७॥
पद्मसरोवर की पूर्व दिशा के समान पश्चिम दिशा में भी एक निर्गमद्वार है जिससे सिन्धु नदी निकलती है । इसप्रकार अन्य सरोवरों में भी सीतोदा नदी पर्यन्त दो दो निर्गम द्वार हैं, जिनका sure आदि उत्तरोत्तर दूना दूना होता गया है। इसके प्रागे अवशेष तीन सरोवरों से निकलने वाली नारी नरकान्ता आदि नदियों के निगम द्वारों का व्यास आदि क्रम से दुगुरण हीन होता गया है || ||