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पञ्चमोऽधिकारः
मङ्गलाचरण एवं प्रतिज्ञा :
प्रथ नत्वा जिनेन्द्रावोंस्तवचर्चाश्च जिनालयान् ।
नदीगङ्गादिका वक्ष्ये निर्गमस्थानविस्तरः ॥१॥ अर्थ:--अब मैं जिनेन्द्र प्रादि पञ्च परमेष्ठियों को, जिन प्रतिमाओं को और जिनालयों को नमस्कार करके गङ्गा आदि नदियों के निर्गम स्थान प्रादि का विस्तार पूर्वक वर्णन करूंगा ॥१॥ चतुर्दश महाशियों के नाम :----
गङ्गासिन्धुनबौरोहिद्रोहितास्या हरित्सरित् । हरिकान्ता च सीताख्या सीतोदरावाहिनी ततः ॥२॥ नारी च नरकान्ता सुवर्णकूलाया नदी ।
रूप्यकूलाभिधा रक्ता रक्तोदेताश्चतुर्दश ॥३॥ अर्थ:-गङ्गा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यक्ला, रक्ता और रक्तोदा ये चौदह नदियाँ हैं ॥२-३॥ इन नदियों के गिरने का स्थान कहते हैं :
पूर्वोक्ताः सप्तगङ्गाद्या नद्यः पूर्वाब्धिगा मताः ।
शेषाः सिन्ध्यादयः सप्त चापराम्बुधि मध्यगाः ॥४॥ अर्थः-उपर्युक्त १४ नदियों में से पूर्व कथित गङ्गा प्रादि सात नदियां पूर्व समुद्र में और शेष सिन्धु आदि सात नदियाँ पश्चिम समुद्र में गिरतीं हैं 11 ४ 11
- विशेषार्थः- उपर्युक्त १४ महा नदियाँ लवण समुद्र में गिरती हैं। इनमें से गङ्गा, रोहित, हरित, सीता, नारी, सुवर्णवाला और रक्ता ये सात नदियां पूर्व लवण समुद्र में और सिन्धु, रोहितास्या,