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चतुर्थाधिकारः
[ ११५ उत्तरोत्तर दूनी दूनी होती गई है। इस प्रकार ही देवी की प्रथम अनीक की प्रथम कक्षा की संख्या ८००० से प्रारम्भ होकर दुगुणी होगी और धृति देवो की १६००० से प्रारम्भ होकर उत्तरोत्तर सातों कक्षात्रों में दूनी दूनी होगी ।
श्रीदेवी की ७ अनीकों की सात कक्षों का सम्पूर्ण प्रभास
कक्ष प्रजानीक प्रश्वानीक रथानीक
१ला कक्ष ४०००
रेरा कक्ष
३ रा कक्ष
१६०००
४था कक्ष ३२०००
पूर्वी कक्ष
६४०००
६ कक्ष | १२५०००
७वीं कक्ष
२५६०००
योग
८०००
४०००
सम्पूर्ण योग
〇〇〇
१६०००
३२०००
६४०००
४०००
1
८०००
वृषभानीक
१६०००
३२०००
६४०००
१२८०००
१२८०००
२५६०००
२५६०००
५०८००० ५०८००० ५०८००० ५०८०००
४०००
८०००
१६०००
३२०००
६४०००
१२८०००
२५६०००
गन्धर्वानीक
उत्तम चारित्र के द्वारा पुण्यार्जन करने की प्रेरणाः
1
४०००
८०००
१६०००
३२०००
६४०००
१२५०००
२५६०००
५०८०००
नृत्यानीक
४०००
5000
१६०००
३२०००
६४०००
१२८०००
५०८०००
एता विव्यविभूतयः सुखकराः, सरसौध संन्यादिकाः । प्राप्ताः श्रावि सुदेवताभिरखिला मान्यप्रभुत्वादयः ।
पदाति
धन्ये चाधि विक्रियधि सुगुरणाः, प्रागजित श्रेयसा । मस्तीह जनाः कुरुध्वमनिशं श्रेयोऽर्जुनं सव्रतः ।। ११५॥
Yoo
८०००
२५६००० २५६०००
१६०००
३२०००
६४०००
१२८०००
५०८०००
३५५६०००
श्रर्थ:- :- इस प्रकार श्री ह्री प्रादि देव कुमारियों को जो दिव्य विभूतियाँ, सुखों का समूह, उत्तम भवन, उत्तम सैन्य आदि का वैभव तथा प्रभुत्व आदि का ऐश्वयं एवं और भी जो अवधिज्ञान,