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चतुर्थाधिकार
[ १११
भवनों की
वायच्य ।
क्रमांक
कोण में' चदिशा---
देवकुमारियां लम्बाई -
फुल योग
आठों दिशाओं में प्रतिहार
पश्चिम में अनीक देव
सामानिक तनु रक्षक
शामिकतनु रक्षक, आग्नेय
में दक्षिण में नैऋत्य में
मध्य | बाह्य प्रभ्यन्तर
पारिषद पारिष
चौड़ाई
TM
१४०११५ २८०२३०
| ९६००
-
|
|
-
००२E४३२
५६०४६०
-
१ श्री ५ को. १ को. को. ४००० | १६०००/ ३२०००, ४०००० ४८०.. २ ही २ को, १ को १३को.' ८००० - ३२०००, ६४०७० ८००० ३. धति ४ को. २ को ३ को १६०००. ६४०००१२०००० १६०००० १९२००० ४ कोति। ४ । २ । ३ । १६००० ६४०००१२८००० १६०००० १९२०० ५ बुद्धि | २ | १ | | ८००० / ३२०० ६४२७० ८०००० ९६७००, १४ | २१६ बातमी ! | ४... | १६०... ३२०... ४०... ४५०.....।
५६०४६०
२००२३०
अब परिवार कमलों का और उनके भवनों का व्यास आदि कहते हैं :
जसान्ते समनालानि नानामणिमयानि च । परिवारामराब्जानि याविषदेव योषिताम् ॥१००। कमलेन्योर्धमानानि व्यासायामादिभिस्तथा । गृहेभ्यः परिवाराणां गृहाण्यर्धमितानि च ॥१०१॥
अर्थ:-श्री आदि छह देवकुमारियों के परिवार कमल जल के मध्यमें नाना प्रकार की मरिणयों से रचित और समान ऊँचाई पर ( अर्थात् जल के बाहर जिनकी नाल समान निकली हुई है) स्थित हैं। श्री श्रादि देवी के मूल कमलों से परिवार कमलों का व्यास यादि अर्घ प्रमाण है, इसीप्रकार उनके मूल भवन से परिवार देवों के भवनों का व्यास प्रादि भी अर्ध प्रमाग है ।।१००-१०१।।
अमीषा पद्मगेहानां प्रत्येक व्यासादीन्युच्यन्ते :--श्रीलक्ष्मी परिवार देव कमलानां व्यासः द्वी क्रोशौ । कणिका व्यासः अर्थक्रोशः स्यात् । पत्रायामः पादोनक्रोशश्च । ह्रीबुद्धिपरिवारामर पद्मानां विष्कम्भः योजन भवेत् । कणिका विष्कम्भः एकक्रोशः पत्रदीर्घतासार्धक्रोशश्च । धृतिकीर्तिपरिवारदेवाम्भोजानां बिस्तारो दू' योजने ! कणिका विस्तारः द्वौ कोशौ । पत्रायामस्त्रयः क्रोशाः। श्री