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चतुर्थाधिकार भवेयुरष्टचत्वारिंशसहस्राजसद्गही । नैऋत्यदिग्धिभागे बाहयपरिषत्सुधाशिनाम् ।।१३।। प्राधायाः पतिरेव स्यारसूर्य : परिषदोऽमरः । चन्द्रमा मध्यमायास्तु बाहयाया यदुपो महान ।।४।। चतुःसहस्रपद्मा वायुकोणेशान कोणयोः । सामान्यकाख्य देवानां सन्तिपमालयाः शुभाः ॥६५॥ सप्तानीकामराणां स्युः पश्चिमायांदिशि स्थिताः । प्रत्येक सप्तमेदानां सप्ताम्भोजराहाः शुभाः ॥१६॥ कमलान्यङ्गरक्षारणां सहस्राणि तु षोडश । श्रियो मोजसमीयानि पूर्वादिदिक्चतुष्टये ।।९७।। श्रीपदमपरितोऽष्टासु दिग्विविक्षवम्बुजालयाः । प्रतीहारोत्तमानां स्पुरष्टोत्तरशतप्रमाः ॥ ६॥
अर्थः-श्री देवो के मूल कमल की प्राग्नेय दिशा में प्राभ्यन्तर परिषद् देवों के ३२००० भवन ३२०४० कमलों पर स्थित हैं इनके प्रमुख देव ( स्वाभी) का नाम सूर्य है इसी प्रकार चन्द्र नाम का देव है स्वामी जिनका ऐसे मध्यपरिषद् के ४०००० कमलस्थ भवन (मूल कमल को दक्षिण दिशा में स्थित हैं, तथा यदुप नाम का देव है स्वामी जिनका ऐसे बाहय परिषद् देवोंके ४८००० भवन ४००० कमलों पर ( श्री देवी के मल कमल को ) नेऋत्य दिशा में स्थित हैं। श्री देवी के मूल कमल को ऐशान और वायव्य दिशामें ४००० भवन ४००० कमलों पर स्थित हैं।
__ मल कमल को पश्चिम दिशा में सात प्रकार के अनोक देवों के सात भवन सात कमलों पर स्थित हैं। ये प्रत्येक अनीक सात सात कक्षाओं से युक्त हैं श्री देवी के मूल कमल को चारों दिशानों में चार चार हजार अर्थात् १६००० तनुरक्षक देवों के कमलस्थ भवन हैं । इसी प्रकार श्री देवी के मूल कमल के चारों ओर अर्थात् चार दिशाओं में ( १४, १४) और चारों विदिशानों में (१३-१३) प्रतिहार महत्तरों के कमलस्थ भवन १०८ हैं ।।६१-६८।।
विशेषार्थः श्री देवी के और उनके परिवार कमलों के प्रवस्थान का चित्रण निम्नप्रकार है: