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सिद्धान्तसार दीपक
धर्मस्तोर्थकृतादि वैभव पिता सर्वार्थसिद्धि करो, धर्मो मेseg शिवाय संस्तुत इहाल सेवितस्तद्गुणैः ॥ १२३ ॥
इति श्री सिद्धान्तसार दीपक महाग्रन्थे भट्टारक श्रीसकलकीर्ति विरचिते नरक दुःख वनो नाम तृतीयोऽधिकारः ॥३॥
अर्थ :- धर्म ही नरकरूपगृह का आगल है, सुख देने वाला है, धर्म ही मोक्ष लक्ष्मी का प्रदाता है, धर्म हो इन्द्र, धरणेन्द्र एवं चक्रवर्ती श्रादि पदों पर प्रतिष्ठित करने वाला है, धर्म ही गुणों का खजा ना है, धर्म ही तीर्थंकर आदि संभव की उत्पन्न करने वाला पिता है और धर्म ही सर्व प्रयोजनों को सिद्धि करने वाला है, प्रतः यह तद् तद् गुणों के द्वारा पूर्णरूप से सेवन किया गया तथा स्तवन किया धर्म मुझे मोक्ष के लिये हो ।
इस प्रकार भट्टारकसकलकीति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम के महाग्रन्थ में नरकों के दुःखों का वर्णन करने वाला तीसरा अधिकार समाप्त ||