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चतुर्थाधिकार
[८१ कनकार्जुनहेमाभास्त्रयो दक्षिण भूधराः ।
वैडूर्यरजतस्वर्ण-मयाः कुलाद्रयस्त्रयः ॥२६॥ अर्थः-- दक्षिण दिशा के तीन कुलाचलों का वर्ण क्रमशः कनक, अर्जुन और हेम के सदृश है तथा उत्तर दिशा के तीन कुलाचलों का वर्ण क्रमशः वैडूर्य, रजत और स्वर्णमय है ।।२६।।
विशेषार्थः-हिमवन पर्वत का वर्ण स्वर्ण सत्श, महाहिमवन् का अर्जन अर्थात् चाँदी सदृश, निषधपर्वत का हेम अर्थात् तपाये हुये स्वर्ण सहश, नील पर्वत का वैडूर्य (पन्ना) अर्थात् मयूर खण्ड सश, रुक्मी पर्वत का रजत अर्थात् चाँदो सहश और शिखरिन् पवंत का स्वर्ण सदृश वर्ग है।
भरतक्षेत्र के व्यास का प्रमाण कहते हैं:
नवत्यप्रशतंर्भाग-जम्बूद्वीपस्य विस्तरः। विभक्तो भरतस्यको मागो ध्यासोमतोजिनः ॥२७॥
अर्थः जम्बूद्वीप के विस्तार (१ लाख यो०) को १६० भागों से भाजित करने पर जो एक भाग प्राप्त होता है वही भरत क्षेत्र का व्यास जिनेन्द्र भगवान् द्वारा माना गया है ॥२७॥
विशेषार्थ:- जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन है । इसको १६० से भाजित करने पर (29820) =५२६१ योजन प्राप्त होता है यही एक भाग भरतक्षेत्र का विस्तार माना गया है । ७ क्षेत्र और ६ पर्वतों की १६० शलाका होती है, अतः १६० से भाजित किया है । शलाका का प्रमाण १+२+४+८+१६+३२+६४+३२+१६+६+४+२+१= १६० है ।
अस्यव्याख्यानमिदम्:-जम्बूद्वीपस्य नवत्यधिकशतभागकृतानामेको भागो भरतस्य विष्कम्भः । हिमवतो द्वौभागौ च । हैमवतस्य चत्वारो भागाः । महाहिमवतोऽष्टी भागाः। हरिक्षेत्रस्य षोडशभागाः । निषधाद्रे त्रिशत्भागाः ।। विदेहस्य चतुःषष्टिभागाः । नीलस्य द्वात्रिंशत् भागाः। रम्यकस्य षोडशभागाः । रुक्मिणोऽष्टी भागाः । हैरण्यवतस्य चत्वारो भागाः। शिखरिणो द्वौ भागो । ऐरावतस्यैको भागः । इत्यमी स पिण्डीकृताः कृत्स्नक्षेत्राद्रीणां नवतिशतभागाः भवन्ति ।
इसोका विशेष विवेचन करते हैं:--जम्बूद्वीप के (१००००० योजन विस्तार के) १६० भाग करने पर १ भाग प्रमाण भरत का विस्तार, २ भाग हिमवन्, ४ भाग हैमवत, ८ भाग महाहिमवन, १६ भाग हरिक्षेत्र, ३२ भाग निषधपर्वत, ६४ भाग विदेह, ३२ भाग नील पर्वत, १६ भाग रम्यक क्षेत्र, भाग रुक्मी पर्वत, ४ भाग हैरण्यवत क्षेत्र, २ भाग शिखरिन् पर्वत और १ भाग प्रमाण ऐरावत क्षेत्र