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चतुर्थाधिकार
प्रार्थी द्वीप मध्य धातकीखण्डसंशकः । पुरुकराविवरश्वान्यस्तृतीयो वारुणीवरः ||४|| ततः क्षीरवशे द्वोपो नाम्ना धृतवरो परः । द्वीप भद्रवरो नन्दीश्वरोऽष्टमोऽरुणाभिधः ||५|| द्वीपोऽथारुणभासाख्यः कुण्डलादिवरस्ततः । द्वीपः शङ्खवराभिरुयो रुचकादिवराह्वयः ॥ ६ ॥ भुजगाविचरो द्वीपस्तथा कुशवराख्यकः । द्वीपः क्रौञ्चवरो नामेत्याद्यन्यैर्नामभिर्युताः ||७|
अर्थः- मध्यलोक में सर्व प्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप ( २ ) धातकी खण्ड (३) पुष्करवर (४) वारुणीवर (५) क्षीरवर (६) घृतवर (७) क्षीद्रवर (८) नन्दीश्वर ( ९ ) प्रणवर (१०) महाभासर (११) कुण्डलवर (१२) शङ्खवर (१३) रुचकवर (१४) भुजगवर (१५) कुशवर और (१६) क्रौञ्चवर है ये श्रादि के १६ द्वीप हैं। इसके बाद प्रसंख्यात द्वीप समुद्रों को छोड़कर अन्त के १६ द्वीपों के नाम भी हैं ||५-७॥
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विशेषार्थः - ऊपर तीन श्लोकों में मध्यलोक के अभ्यन्तर १६ द्वीपों के नाम कहे हैं, इनके आगे प्रसंख्यात द्वीप समुद्रों को छोड़कर अन्त के सोलह द्वीपों के नाम निम्नप्रकार हैं: - ( १ ) मनःशिला द्वीप (२) हरितालवर (३) सिन्दूरवर (४) श्यामवर (५) अनवर (६) हिंगुलवर (७) रूप्यवर (८) सुवर्णवर (8) वज्रवर (१०) वेडूयंवर (११) नागवर (१२) भूतवर (१३) यक्षवर (१४) देववर (१५) हीन्द्रवर और (१६) स्वयम्भूरमण द्वीप है । इस प्रकार ये आदि अन्त के ३२ द्वीप और ३२ ही समुद्र हैं, इनके बीच प्रसंख्यात द्वीप समुद्र हैं। ये सब एक राजू के मध्य में ही
स्थित हैं ।
नोट: - यह विशेषार्थ टिप्परग के आधार पर लिखा है ।
द्वीप समुद्रों की स्थिति एवं प्राकृतिः
शुभैः संख्यातिगा द्वीपसमुद्राः परिवेष्टय च । परस्परं हि तिष्ठन्ति बलयाकृतिधारिणः ||८||
अर्थ :- शुभ नाम वाले असंख्यात द्वीप समुद्र बलयाकृति और परस्पर में एक दूसरे को परिवेष्टित करते हुये (घेरे हुये ) स्थित हैं ||८||
समुद्रों की स्थिति एवं नामों का कथन करते हैं: