________________
चतुर्थोधिकारः
मङ्गलाचरण:
नमामि मध्यलोकस्थान सर्वाश्च परमेष्ठिनः ।
जिनालयान् जिनार्चावीन् मोक्षाय कृत्रिमतरान् ॥१॥ अर्थ:--मध्यलोक में स्थित सम्पूर्ण पञ्चपरमेष्ठियों को, कृत्रिम प्रकृत्रिम जिनमन्दिरों को और कृत्रिम अकृत्रिम जिन प्रतिमाओं को मैं मोक्ष की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूँ ॥१॥
विशेषार्थः--मध्यलोक में स्थित प्रकृत्रिम जिन चैत्यालय ४५८ हैं । जिनका विवरण:नन्दीश्वर द्वीप के ५२ चैत्यालय, कुण्डल गिरि के ४, रुचकांगार के ४ इस प्रकार ( ५२+४+४) -६० चैत्यालय तिर्यग्लोक में हैं, और पांच मेरु के ८०, वीस गजदन्तों के २०, अस्सी वक्षार पर्वतों के ८०, तीस कुलाचलों के ३०, चार इष्वाकार पर्वतों के ४, एक मानुषोत्तर पर्वत के ४, एक सौ सत्तर विजयाओं के १७०, और दश जम्बू शाल्मलि वृक्षों के १० अकृत्रिम चैत्यालय हैं । इस प्रकार मनुष्य लोक में कुल (८०+२०+५० +३+४+४+१७०+१०)=३९८ अकृत्रिम जिनमन्दिर हैं । तिर्यग्लोक के ६० और मनुष्य लोक के ३९८ इन दोनों को जोड़ देने से मध्यलोक में कुल प्रकृत्रिम चैत्यालय ( ३६+६०)-४५८ होते हैं । इन एक एक चैत्यालय में एक सौ पाठ, एक सौ आठ प्रतिमाएँ हैं अतः ४५८ को १०८ से गुरिणत कर देने पर (४५८x१.८)=४६४६४ मध्यलोक के अकृत्रिम जिन प्रतिमानों का प्रमारा प्राप्त हो जाता है । अर्थात् मङ्गलाचरण में ४५८ अकृत्रिम चैत्यालय और ४६४६४ अकृत्रिम प्रतिमाओं को नमस्कार किया है। टिप्पण कर्ता ने इसका गुणा निम्न प्रकार से किया है:
गुरगन प्रक्रिया-जितने अंकों में गुणा करना हो चौड़ाई (प्राई ) में उतने खण्ड बनाना और जितने अंकों का गृणा करना हो लम्बाई ( खड़े ) में उतने खण्ड बना कर दहाई और इकाई के अंक रखने के लिये प्रत्येक खण्ड के दो दो खण्ड करना चाहिये । यहाँ तीन अंकों (४५८ ) में तीन हो अंकों (१०८) का गुणा करना है अतः लम्बाई और चौड़ाई में तीन तीन खण्ड करके पीछे दहाई और इकाई के लिये प्रत्येक खण्ड के दो दो भाग किये । सर्व प्रथम ४५८ को १ से गुणा करने पर दहाई में ० पौर इकाई स्थान में ४, ५, और पाठ ही लिखे नावेंगे। ४५८ को • से गुणा करने पर दहाई और इकाई दोनों स्थानों पर शून्य शून्य ही पागे, इसी प्रकार ४५८ के पाठ के अंकों को १०८ के पाठ से गुणा