________________
८२ ]
सिद्धान्तसार दोपक
द
करने पर ६४ प्राप्त हुए जो दहाई में ६ ओर इकाई में ४ रखे गये आगे ४० और ३२ को भी इसी प्रकार रख कर चक्र के दाहिने भाग में नीचे से जोड़ना जैसे प्रथम पंक्ति में मात्र ४ हैं अतः सर्व प्रथम ४ का अंक रखना, दूसरी पंक्ति में शून्य छह और शुन्य है अतः ६ का अंक रखना, तीसरी पंक्ति २,४०० और हैं इनका योग १४ होता है अतः तृतीय स्थान में ४ लिखना और दहाई का एक अंक अगली (चौथी) पंक्ति में जोड़ना, इस प्रकार अगली (चौथी ) पंक्ति में ( १ ) ३०,०, ५ और ० हुए, इनका योग ६ प्रायः जो चतुर्थ स्थान में रखना । पञ्चम पंक्ति में ०४ और ० है इनका योग ४ हुआ अतः अन्तिम स्थान में ४ रख देना । छठवीं पंक्ति में मात्र है, अतः कुछ नहीं रखा जायगा । इस प्रकार योग को कुल संख्याएँ ४१ हजार ४ सौ १४ प्राप्त हुई जो ४५८ x १०८ के गुणन फल स्वरूप हैं ।
मध्यलोक के वर्णन करने की प्रतिज्ञा एवं उसका प्रमाण:--
अथ वक्ष्ये समासेन मध्यलोकं जिनागमात् । एकरज्जुप्रमव्यासासंख्यद्वीपान्धपूरितम् ॥२॥ लक्षैकयोजनोत्सेधो मध्यलोकोऽभिधीयते । चित्राभूमितलात्मेरुशिरःपर्यन्त ऊर्जितः || ३||
अर्थः- अब मैं जिनागम से श्रर्थात् जिनागम के अनुसार संक्षेप से मध्यलोक का वर्णन करूँगा । इस मध्यलोक का व्यास एक राजू प्रमाण है, जो प्रसंख्यात द्वीप समुद्रों से व्याप्त है । चित्रा पृथ्वी के तलभाग से लेकर सुमेरुपर्वत के शिखर पर्यन्त अर्थात् एक लाख योजन इस लोक की ऊँचाई है ।।२-३।।
विशेषार्थ :- मध्यलोक का व्यास एक राजू और ऊंचाई एक लाख योजन अर्थात् ४०००००००० चालीस करोड़ मील है ।
शंका- राजु वि.से कहते हैं ?
समाधान—जगच्छ्रेणी के सातवें भाग को राजू कहते हैं । जैसे जगच्छ्रेणी का प्रमाण बादल से गुणित एकट्ठी (६५५३६४ ६५५३६२ ) है । इसमें सात का भाग
६५५३६४ x ६५५३६
* ६५४३६९)
७
देने पर जो एक भाग प्राप्त हो वही राजू का प्रमाण है ।
श्रादि के सोलह द्वीपों के नाम:--