________________
द्वितीय अधिकार मेघायां सा खिलोकहा, जघन्या नोलनामिका । अजनायां च लेश्यास्ति, नीलारुपामधमाशुभा ॥१३॥ अरिष्टायां भवेत्रीलोत्कृष्टा कृष्णा जघन्यका । गाव मध्यमा कृष्णा, केला त्यामुष्टु निजिता ॥१४॥ माघठयां सकलोत्कृष्टा, कृष्णलेश्याऽशुमाकरा ।
इमास्त्रिस्रोऽशुभालेश्या दुःखाद्याक्लेशमातरः ॥६५॥ अर्थ:-जो दुःखों को देने वाली हैं और क्लेश को माता हैं नरकों में ऐसो तीन प्रशुभ लेश्याएं होती हैं। उनमें से धर्मा पृथ्वी में स्थित नारको जोबों के परिणाम जघन्य कापोत लेण्या से युक्त, वंशा में मध्यम कापोत, मेघा में उत्कृष्ट कापोत और जघन्य नौल, प्रजना में मध्यम नोल, अरिष्टा में उत्कृष्ट नील और जघन्य कृष्ण, मघवो में मध्यम कृष्ण और माधवी पृथ्वी में उत्पन्न नारको जीवों के परिणाम निन्दनीय उत्कृष्ट कृष्णलेश्या से अनुरस्जित होते हैं ।।६२-६५।। कितने संहननों से युक्त जीव किस पृथ्वी तक उत्पन्न होता है इसका निर्देश :
प्राद्यान श्वभ्रत्रवान् यान्ति, षट्संहनन संयुताः। पञ्चमश्वभ्रपर्यन्तं, पञ्चसंहमनान्विताः ।।६६॥ षट् पृथ्व्यन्तं च गच्छन्ति, चतुः संहननाङ्किताः।
पापिनः सप्तपृथ्व्यम्तमादि संहननानिमः ॥६७॥ अर्थ:--प्रादि के तीन नरकों तक छह संहननों से युक्त जीव जन्म लेते हैं, पाचवें नरक पर्यन्त सुपाटिका को छोड़ कर शेष पांघ संहनन वाले, छठवें नरक पर्यन्त सृपाटिका और कोलक को छोड़कर शेष चार संहनन वाले तथा सातवें नरक में ( ७ वें नरक पर्यन्त ) एक वजवृषभनाराचसंहनन से यक्त पापी जीव ही जन्म लेते हैं ॥६६-६७।। कौन जीव किस किस पृथ्वी तक जन्म ले सकते हैं ? इसका निदर्शन करते हैं :
असंजिनोऽति पापेन बजन्ति प्रथमा क्षितिम् । सरीस द्वितीयान्तं यान्त्युत्कृष्ट कुपापतः ॥९॥ मांसाशिपक्षिणः क रास्तृतीमान्तं व्रजस्ति च । भुजङ्गमाश्चतुर्यन्तमत्यन्तक रकर्मभिः ।। वंष्ट्रियः सिंहन्याघ्राद्याः पञ्चम्यन्तं प्रयान्ति च ।
निःशीला प्रतिपापाठयाः षष्टयन्तं योषिताः' क्रमात् ॥१०॥ १: योषितोऽशुभात् प०।