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कसायपाहुडसुत पाठक स्वयं अनुभव करेंगे, कि दोनों पाठोंमें कितना अधिक साम्य है ।
(२०) उपशमश्रेणीसे गिरनेवाले जीवका पतन किन-किन गुणस्थानोमे होता है, इसका वर्णन कसायपाहुडचूर्णिमें इस प्रकार किया गया है
पृ० ७२६, सू० ५४२. एदिस्से उवसमसम्मत्तद्धाए अनंतरदो असजम पि गच्छेज, संजमासंजमं पि गच्छेज्ज, दो वि गच्छेज्ज । ५४४. छसु प्रावलियासु सेसासु
आसाणं पि गच्छेज्ज । ५४४. आसाणं पुण गदो जदि मरदि, ण सक्को णिरयगदि तिरिक्खगदि मणुसगदि वा गंतु। णियमा देवगदिं गच्छदि । ५४५. हंदि तिसु आउएस एक्केण नि बद्धेण आउगेण ण सक्को कसाए उवसामेदु।
अब उक्त कसायपाहुडचूर्णिका कम्मपयडीकी निम्न चूर्णिसे मिलान कीजिए-- __पमत्तापमत्तसंजयट्ठाणेसु अणेगारो परिवत्तीत्तो काउ' 'हेडिल्लाणंतरदुगं श्रासाणं वा वि गच्छिज' ति-हिंडिलाणंतरदुगं ति देसविरओ असंजयसम्मदिट्ठी वा होजा, ततो परिवडमाणो आसाणं वा वि गच्छेज्ज त्ति-कोति सासायणतणं गच्छेजा । (पृ०७४) उवसमसम्मत्तद्धाए वट्टमाणो जति कालं करेइ धुवं देवो भवति । जई सासायण कालं करेति सो वि नियमा देवो भवति । किं कारणं ? भन्नति-'तिसु आउगेसु बद्धेसु जेण सेढिं न आरुहइ' त्ति-देवाउगवज्जेसु आउगेसु बढेसु जम्हा उवसामगो सेढीते अणुरुहो भवति तम्हा सासायणा वि देवलोगे जाति ।
__ (कम्मप० उप० पृ० ७३) यद्यपि कसायपाहुडचूर्णिका कम्मपयडीचर्णिके साथ मिलान करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दोनोंके रचयिता आ० यतिवृपभ ही है, तथापि इससे भी अधिक पुष्ट और सवल प्रमाण हमें तिलोयपएणत्तीके अन्तमे पाई जानेवाली उस गाथासे भी उपलब्ध होता है, जिसमें कि स्पष्टरूपसे कम्मपयडीकी चर्णिका उल्लेख किया गया है । वह गाथा इस प्रकार है
चुण्णिसरूवट्टकरणसरूवपमाण होइ किं जत्तं ।
अट्ठसहस्सपमाणं विलोय पणाचणामाए ॥७७॥ इसमें बतलाया गया है कि पाठ करणोंके स्वरूपका प्रतिपादन करनेवाली कम्मपयडीका और उसकी चूर्णिका जितना प्रमाण है, उतने ही आठ हजार श्लोक-प्रमाण इस तिलोयपएणत्तीका परिमाण है।
इसका अभिप्राय यह है कि क्रम्मपयडीकी गाथाऐ लगभग ६०० श्लोक प्रमाण हैं, क्योंकि एक गाथाका प्रमाण सामान्यत सवा-श्लोक-पमाण माना जाता है और कम्मपयडीकी चूर्णिका प्रमाण लगभग साढ़े सात हजार श्लोक प्रमाण है, इस प्रकार दोनों का मिल करके जो प्रमाण होता है, वही पाठ हजार श्लोक-प्रमाण तिलोयपएणत्तीका प्रमाण बतलाया गया है।
यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि कम्मपयडीमें बन्धन आदि पाठ करणोंका स्वरूप प्रतिपादन किया गया है जैसा कि उसकी पहली और दूसरी गाथासे स्पष्ट है । व दोनों गाथाएं इस प्रकार हैं