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जैन तत्त्वादर्श
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कैसे दुर्भिक्षादिक में अपने आपको धारण करूंगा, ऐसा जो भय सो " आजीविकाभय, " ६ मरणभय-मरण से जो भय सो "मरणभय" एह प्रसिद्ध ही है, ७. अश्लाघाभय-अयश का भय जो मै ऐसा करूंगा तो मेरा बड़ा अपयश होगा, अपयश के भयसे किसी निन्दनीय कार्य में प्रवर्ते नहीं सो " अश्लाघाभय", ए सात प्रकार का भय, इस का जो विपक्षी सो अभय है । सो क्या वस्तु है ? आत्मा का विशिष्ट स्वास्थ्यपना, निःश्रेयस धर्मनिबन्धनभूमिकाभूत, तिस को गुण के प्रकर्ष से अचिन्त्य शक्तियुक्त होने से, सर्वथा परहितकारी होने से जो देवे सो अभयद । १६. " सार्वः " - सर्व प्राणियों के ताई जो हितकारी सो सार्व । १७. " सर्वज्ञः " - सर्व को जो जाने सो सर्वज्ञ । १८: "सर्वदर्शी " - सर्व को जो देखे सो सर्वदर्शी । १६. सर्व प्रकारे कर्मावरण के दूर होने से जो चेतनस्वरूप प्रगट भया सो केवल — केवल ज्ञान, वह जिसके है सो केवली । २०. “देवाधिदेवः " - देवताओं का जो अधिपति सो देवाधिदेव । २१. ' बोधिदः " - बोधि जिनप्रणीत धर्म की प्राप्ति, तिसको जो देव सो बोधि । २२. "पुरुषोत्तमः" - पुरुषों में उत्तम - सहज तथाभव्यत्वादि भावकरी जो श्रेष्ठ सो पुरुषोत्तम । २३. " वीतरागः " - वीतो - तो रागोऽस्मात् इति वीतरागः, चला गया है राग जिससे सो वीतराग । २४. “आप्तः ” - हितोपदेशक होने से आप्त कहिये - ययार्थ वक्ता । इत्यादिक हजारों नाम परमेश्वर के हैं । यह पूर्वोक्त परमेश्वर का स्वरूप श्री हेमचन्द्राचार्यकृत
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