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जैनतत्त्वादर्श इस से यह सिद्ध हुआ कि जो इन्द्रियगोचर है, सोई तात्त्विक है। अब जो परोक्ष प्रमाण-अनुमान भागमादि करके जीव अरु पुण्य पापादि को स्थापन करते हैं, अरु कदाचित स्थापन करने से हटते नहीं हैं, तिन के प्रतिवोध के वास्ते दृष्टान्त कहते हैं-“भद्रे वृकपदं पश्येत्यादि । इस विषय में यह प्रचलित कथा है -कोई नास्तिक पुरुष अपनी आस्तिक मन विषे दृढ प्रतिज्ञा वाली भार्या को नास्तिक मत में लाने के वास्ते अनेक युक्तियों करके प्रति दिन प्रतियोध करता था। परन्तु वो प्रतिबोध को प्राप्त नहीं होती थी । तब उसने विचारा, कि यह इस उपाय से प्रतियोधित होवेगी, ऐसे अपने चित्त में चितन करके रात्रि के पिछले प्रहर में स्त्री को साथ लेकर नगर से बाहर निकल करके उस ने अपनी भार्या को कहा, हे वल्लभे ! इस नगर के बसने वाले लोग परोक्ष पदार्थों को अनुमान प्रादि प्रमाणों से सिद्ध करते हैं, तथा लोक में बहुत शास्त्रों के पढ़े हुये कहलाते हैं, सो अब तू इन की चतुराई देख । ऐसे कह कर उस ने नगर के दरवाजे से लेकर चौक तक सूक्ष्म धूली में अपने हाथों से भेड़िये के पंजों का आकार बना दिया। प्रातःकाल में भेड़िये के पंजे को देख कर वहां बहुत से लोग इकट्ठे हो गये, और उन को देख कर कई एक बहुश्रुत भी वहां भागये । उन बहुश्रुत लोगों ने वहां पर एकत्रित हुए लोगों से कहा कि निश्चय ही कोई भेड़िया रात्रि में बन