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पंचम परिच्छेद शनावरण, ३ अवधिदर्शनावरण ४. केवल दर्शनावरण । अरु निद्रा आदि जो पांच हैं, सोदर्शनावरण के क्षयोपशम करके लब्धात्मलाभ दर्शन लब्धियों का आवरक है । इस का भावार्थ यह है, कि चक्षु करके सामान्यग्राही जो बोध, सो चक्षुर्दर्शन, सो जिस के उदय करके तिस की लब्धि का विघात होवे, सो चक्षुर्दर्शनावरण । ऐसे ही अचक्षु करकेचक्षु को वर्ज के शेष चार इन्द्रिय तथा पांचमा मन, इन करके जो दर्शन, सो अचक्षुर्दर्शन, तिस का जो आवरण, सो अचक्षुर्दर्शनावरण | तथा रूपी पदार्थों का जो मर्यादापूर्वक देंखना-सामान्यार्थका ग्रहण करना, सो अवधिदर्शन; तिस का जो आवरण, सो अवधिदर्शनावरण । तथा वरप्रधान क्षायक होने से केवल, अनंत ज्ञेयके होने से जो अनंत दर्शन, सो केवलदर्शन, तिस का जो आवरण, सो केवलदर्शनावरण | अरु जो चैतन्य का सर्व ओर से अति कुत्सितपना करे, सो निद्रा । अर्थात् दर्शन उपयोग-सामान्य ग्रहण रूप, तिस का विघ्न करने वाली, सो निद्रा जाननी । तिस निद्रा के पांच भेद हैं । १. निद्रा, २. निद्रा निद्रा, ३. प्रचला, ४. प्रचलाप्रचला, ५. स्त्यानर्द्धि । तहां १. निद्रा उस को कहते हैं, कि जो चपटी-चुटकी बजाने से जाग उठे, सो सुखप्रतिबोध निद्रा। जिस के उदय से ऐसी निद्रा आवे तिस का नाम निद्रा है । तथा २. अतिशय करके जो निद्रा होवे, उस का नाम निद्रानिद्रा है, जैसे कि बहुत हलाने से