Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 479
________________ ४३६ जैनतत्त्वादर्श ग्रीवा यथोक लक्षणादि युक्त हों, अरु शेष उदरादिरूप कोष्ठ शरीरमध्य लक्षणादि रहित हो सो वामननामा संस्थान है । ४. उर- उदर आदि तो लक्षण युक्त होवें, अरु हाथ पगआदि लक्षणों से रहित होवें, सो कुब्जसंस्थान है । ५. जिस के शरीर का एक अवयव भी सुन्दर न होवे, सो हुंड संस्थान जान लेना यह पांच संस्थान हैं । २२. जिस के उदय से वर्णादि चारों अप्रशस्त होवे हैं, सो कहते हैं । जो अति वीभत्स दर्शन, कृष्णादि वर्ण वाला प्राणी होता है, सो अप्रशस्त वर्णनाम । सो वर्ण कृष्णादि 'भेदों करके पांच प्रकार का है। ऐसे ही जिस के उदय से प्राणियों के शरीर में कुथित मृतमूषकादिवत् दुर्गंधता होवे, सो अप्रशस्तगंध नाम । तथा जिस के उदय से प्राणियों की देह में रसनेंद्रिय का दुःखदायी, और कौड़ी तोरी की तरे तिक्त कडुवादि असार रस होवे, सो अप्रशस्तरसनाम । 'तथा जिस के वश से स्पशैंद्रिय को उपताप का हेतु, ऐसा कर्कशादि स्पर्शविशेष, जीवों के देह में होवे, सो अप्रशस्तस्पर्शनाम | २३. तथा जिस के उदय से अपने ही शरीर के अवयवों करके प्रतिजिहा, गल, वृंद, लंवक, और चोर दांत आदिक शरीर के अंदर वर्द्धमान हो कर शरीर ही को पीड़ा देते हैं, सो उपघातनाम है । तथा २४. जिस के उदय से जीवों का खर ऊंट आदिक की तरें चलना अप्रशस्त होवे, सो कुवि

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