Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 480
________________ पंचम परिच्छेद ४३७ हायोगतिनाम । तथा २५. जिस के उदय से पृथिवी आदिक एकेंद्रिय स्थावर काय में प्राणी उत्पन्न होता है, अरु स्थावर नाम से कहा जाता है, सो स्थावर नाम । २६. जिस के प्रभाव से लोकव्यापी सूक्ष्म पृथ्वी आदि जीवों में जीव उत्पन्न होता है, सो सूक्ष्म नाम । २७. जिसके उदय से आहार पर्याप्ति आदिक पूर्वोक्त पर्याप्तिये पूरी न होवें, सो अपर्याप्त नाम । २८. जिस के उदय से अनन्त जीवों का 'साधारण एक शरीर होवे, सो साधारण नाम । २९. जिसके उदय से जिह्वादि अवयव, शरीर में अस्थिर होवें, सो अस्थिर नाम । ३०. जिस के उदय से नाभि के नीचे के अवयव अशुभ होवें, सो अशुभ नाम । उस का किसी को हाथ लग जावे, तो वह रोष नहीं करता, परन्तु पग लगने से क्रोध करता है, इस वास्ते अशुभनाम है । ३१. जिस के उदय से जीव को जो २ देखे, तिस २ को वो जीव अनिष्ट लगे-उद्वेगकारी होवे, सो असुभगनाम । ३२. जिस के उदय से कठोर, भिन्न, हीन, दीन स्वर वाला जीव होवे, सो दुःस्वर नाम । ३३. जिस के उदय से चाहे युक्ति युक्त भी वोले, तो भी तिस का कहना कोई न माने, सो अनादेय नाम । ३४. जिस के उदय से जीव, ज्ञान विज्ञान दानादिक गुण युक्त भी है, तो भी जगत् में उस की यश-कीर्ति नहीं होती बल्कि उलटी निंदा होती है, सो अयशःकीर्ति नाम | यह नाम कर्म की चौतीस पाप प्रकृति कही हैं ।

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