________________ કપૂર जैनतत्त्वादर्श है उपयोग का, तिस से जो विपरीत होवे, सो अनाभोग है, तिस करके उपलक्षित जो क्रिया, सो अनाभोगिकी क्रिया / अर्थात् विना देखे, विना पूंजे देश अर्थात भीत भूम्यादिक में शरीरादिक का निक्षेप करना, सो अनाभोगिकी क्रिया / 20. अपनी और पर की जो अपेक्षा करनी, तिस का नाम अवकांक्षा है, इस से जो विपरीत तिस का नाम, अनवकांक्षा है, सोई है कारण जिस का सो अनवकांक्षप्रात्ययिकी क्रिया / तात्पर्य कि जिनोक्त कर्त्तव्य विधियों में से जो विधि अपने को तथा और जीवों को हितकारी है, तिस विधि का प्रमाद के वश हो कर आदर न करना, सो अनवकांक्षाप्रात्ययिकी क्रिया है / 21. प्रयोग-दौड़ना चलना आदि काया का व्यापार, अरु हिंसाकारी, कठोर, झूठ बोलना आदि वचन का व्यापार, पराभिद्रोह, ईर्ष्या, अभिमानादि मनोव्यापार, इन तीनों की जो प्रवृत्ति, सो प्रायोगिकी क्रिया / 22. जिस करके विषय का ग्रहण किया जावे, सो समादानइन्द्रिय, तिसकी जो क्रिया-देश तथा सर्व उपघातरूप व्यापार, सो समादान क्रिया / 23. प्रेम (राग) नाम है माया अरु लोभका, तिन करके जो होवे, सो प्रेमप्रात्ययिकी क्रिया। 24. द्वेष नाम है क्रोध अरु मान का, तिन करके जो होवे, सो द्वेषप्रात्यायकी क्रिया / 25. चलने से जो क्रिया होवे, सो ईर्यापाथकीक्रिया। यह क्रिया वीतराग को होती है। अब इन पच्चीस क्रिया का व्याख्यान करते हैं। 1. प्रथम