Book Title: Jain Tattvadarsha Purvardha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 476
________________ पंचम परिच्छेद ४३३ - [ के उदय से खट्टी वस्तु की अभिलाषा होती है । यह पुरुष वेद का विकार ऐसा है, कि जैसी तृण की अग्नि । क्योंकि तृण की अग्नि एक वार ही प्रज्वलित होती है, अरु तत्काल शांत भी हो जाती है । ऐसे पुरुषवेदं भी एक बार ही तत्काल उदय हो जाता है, फिर शांत भी तत्काल ही हो जाता है । ३. तथा जिस के उदय से स्त्री अरु पुरुष दोनों की अभिलाषा उत्पन्न होवे, सो नपुंसकवेद है । जैसे पित्त अरु कफ के उदय से खट्टी मीठी वस्तु की अभिलाषा होती है । इस नपुंसकवेद का उदय ऐसा है, कि जैसे मोटे नगर के दाह की अग्नि | यह तीन वेद हैं । ४ तथा जिसके उदय मेसनिमित्त और निर्निमित्त. हसना आवे, सो हास्यनामा मोहकर्म की प्रकृति है । ५. तथा जिस के उदय से रमणीक वस्तुओं में रमे-खुशी माने, सो रतिनामा मोहकर्म की प्रकृति है । ६. तथा इस से जो विपरीत होवे, सो अरतिनामा , मोहकर्म की प्रकृति है । ७. तथा जिस के उदय करके प्रियवियोगादि में विकल हुआ मन शोव, कंदन, और परिदेवन आदि करता है, सो शोकनामा मोहकर्म की प्रकृति है । ८. तथा जिस के उदय से सनिमित्त अथवा विना निमित्त के भयभीत होवे, सो भयनामा मोहकर्म की प्रकृति है । ६. तथा गंड आदि मलिन वस्तु के देखने से जो नाक चढ़ाना, तिस का जो हेतु है, सो जुगुप्सानामा मोहकर्म की प्रकृति है । यह नव नोकषाय मोहकर्म की प्रकृति हैं । 1 5 M I

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