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चतुर्थ परिच्छेद
३४७ • भावार्थ:-घट और मृत्तिका का अन्वय-अभेद नहीं है, क्योंकि पृथु, बुन, उदराकारादिको करके इस का भेद है, तथा अन्वयवर्ती होने से घट का मृत्तिका मे भेदं भी नहीं है, एतावता घट मृत्तिका रूप ही है । तब अन्वय व्यतिरेक इन दोनों के मिलने से घड़ा जो है, सो जात्यंतर रूप है, एतावता मृत्तिका से कथंचित् भेदा भेद रूप है । सिंह रूप होने से नर नहीं है, अरु नररूप होने से सिंह भी नहीं है, 'तव तो शब्द, विज्ञान, और कार्य के भेद होने से नरसिंह
जो है, सो तीसरी जाति है। .. : .. २. अथ रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, इन की प्रवृत्ति रूपी द्रव्य में है, अरु ये विशेष गुण हैं । तथा संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, ये सामान्य गुण हैं 1. इन की सर्व द्रव्य में वृत्ति है । तथा बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार, ये आत्मा. के गुण हैं। तथा गुरुत्व पृथिवी और जल में है । द्रक्वः पृथिवी, जल अरु अग्नि में है। स्नेह जल में ही है । वेग नाम का संस्कार मूर्च द्रव्यों में है । अरु शब्द आकाश का गुण हैं । परन्तु तिन में संख्यादिक जो सामान्य गुण हैं। वे .रूपादिवत् द्रव्यस्वभाव होंने करके परोपाधि से शुंणं ही नहीं हैं। क्यों कि जब गुण, द्रव्य से पृथक् हो जायेंगे, तब द्रव्य के स्वरूप की हानि हो जावेगी ।*"गुणपर्यायवद्दव्यम्" इस कहने
mmmmmmmmmmmmm * तत्वा० अ०, ९ सू० ३७ । द्रव्य, गुण और पर्याय वाला है।