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जैनतत्त्वादर्श करके तिर्यग्गति होने से, गवाश्वादिवत् । तिर्यग्गति का नियम करने से, परमाणु के साथ व्यभिवार नहीं। इस प्रकार शस्त्र करके अनुपहत वायु सचेतन है। ____अरु वनस्पति में तो प्रत्यक्ष प्रमाण से जीव सिद्ध ही है। इस वास्ते यहां विस्तार से नहीं लिखा । तथा सर्वज्ञ का कथन करा हुआ आगम भी पृथ्विी, जल, अग्नि, पवन अरु वनस्पति में जीव का होना कहता है । कोई २ पुरुष द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिन्द्रिय अरु पंचेंद्रिय में भी जीव नहीं मानते; परन्तु तिन के न मानने से कुछ हानि नहीं। यह संक्षेप से जीवों का स्वरूप लिखा है । जव विस्तार से देखना होवे, तव जैनमत के सिद्धांत-आगम ग्रन्थ देख लेने। अथ दूसरा अजीव तत्त्व लिखते हैं । अजीव उस को
___ कहते हैं, कि जो जीव के लक्षणों से विपरीत अजीव तत्त्व होवे-जो ज्ञान से रहित होवे, और जो रूप, का स्वरूप रस, गंध, अरु स्पर्शवाला होवे, नर अमरादि
___ भव में न जावे, अरु ज्ञानावरणीयादिक कर्म का कर्ता न होवे, अरु तिनों के फल का भोगने वाला न होवे, जडस्वरूप होवे । सो अजीव द्रव्य पांच प्रकार के हैं१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. पुद्गलास्तिकाय, ५. काल ।
तिन में पहला जो धर्मास्तिकाय है, सो लोकव्यापी है, नित्य है, अवस्थित है, अरूपी है, अंसख्य प्रदेशी है, जीव अरु