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जैनतत्त्वादर्श
नहीं होती, क्योंकि भावशुद्धि से फल प्राप्ति में किसी का विवाद नहीं है, तथा ऐसे भी मत कहना कि वेदविहित हिंसा बुरी नहीं, क्योंकि सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान संपन्न, अर्चिमार्ग के अनुगामी वेदांतवादियों ने भी इस हिंसा की निन्दा की है । * तथा च तत्त्वदर्शिनः पठंतिः-
देवोपहारव्याजेन, यज्ञव्याजेन येऽथवा । नंति जंतून् गतघृणा घोरां ते यांति दुर्गतिम् ॥ वेदांतिका अप्याहु:
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अंधे तमासि मज्जाम, पशुभि ये यजामहे ।
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हिंसा नाम भवेद्धम्मों, न भूतो न भविष्यति ॥
तथा:
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X अनि ममेतस्मात् हिंसाकृतादेनसो मुंचतु [छांदसत्वान्मोचयतु इत्यर्थः ।]
* तत्त्वदर्शी लोगों ने कहा है:
जो निर्दय पुरुष देवों की प्रसन्नता और यज्ञ के बहाने से पशुओं
का वध करते हैं, वे घोर दुर्गति को प्राप्त होते हैं ।
वेदान्तियों ने भी कहा है:
यदि हम पशुओं के द्वारा यज्ञ करें; तो घोर अन्धकार में पढेंगे ।
हिंसा न कभी धर्म हुआ, न है, और न होगा । -
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X अग्नि मुझे इस हिंसाजनित पाप से छुड़ाने ।