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पंचम परिच्छेद
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नंदी सूत्र में लिखा है । आत्माकी सिद्धि चार्वाक मतके खण्डन में लिख आये हैं । जे कर आत्मा की सिद्धि विशेष करके देखनी होवे, तो गंधहस्ती महाभाष्य देख लेना । तथा यह आत्मा सर्व व्यापी भी नही, और एकांत नित्य, तथा कूटस्थ भी नहीं है । एवं एकांत अनित्य-क्षणिक भी नहीं है। किंतु शरीर मात्र व्यापी कथंचित् नित्यानित्य रूप है । इन का अधिक खण्डन मण्डन देखना हो, तो स्याद्वादरताकर, स्याद्वादरत्नाकरावतारिका और अनेकांतजयपताका आदि शास्त्रों से देख लेना। मैंने इस वास्ते नहीं लिखा है, कि ग्रन्थ वड़ा भारी हो जावेगा, अरु पढ़ने वाले आलस 'करेंगे 1
तहां जीव जो हैं, सो दो प्रकार के हैं । एक मुक्त रूप, दूसरे संसारी, यह दोनों ही प्रकार के जीव स्वरूप से अनादि अनंत हैं, अरु ज्ञान दर्शन इन का लक्षण है । तथा जो मुक्त स्वरूप आत्मा है, वो सर्व एक स्वभाव है । अर्थात् जन्मादि क्लेशों करके वर्जित, अनंत दर्शन, अनंतवीर्य, और अनंत आनंदमय स्वरूप में स्थित, निर्विकार निरंजन और ज्योति स्वरूप है |
अरु जो संसारी जीव हैं, सो दो प्रकार के हैं । एक स्थावर, दूसरे त्रस | उस में स्थावर के पांच भेद हैं - १. पृथिवीकाय, २. अप्काय, ३. तेज काय, ४. वायुकाय, ५. वनस्पतिकाय । तथा त्रस जीव के चार भेद हैं - १. दो इन्द्रिय, २. तीन इन्द्रिय, ३. चार इन्द्रिय, ४. पांच इन्द्रिय । तथा