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पंचम परिच्छेद
४०७ इन जीवों में एक मन के बिना पांच पर्याप्ति हैं । पंचेंद्रिय जीवों में छे ही पर्याप्ति हैं। पृथिवीकाय, जलकाय, तेजःकाय, वायुकाय, इन चारों में असंख्य जीव हैं । तथा वनस्पतिकाय में से जो प्रत्येक वनस्पति है, उस में तोअसंख्य जीव हैं; परंतु साधारण वनस्पति में अनंत जीव हैं । इन स्थावर अरु त्रस जीवों के जघन्य तो चौदह भेद हैं, मध्यम ५६३ भेद हैं, अरु उत्कृष्ट-अनंत भेद हैं । तिन में मध्यम चौदह भेद नरक वासियों के हैं । अडतालीस भेद तिर्यंच गति वालों के हैं, और तीन सौ तीन भेद मनुष्य गति वालों के हैं, १६ भेद देवगति वालों के हैं, यह सर्व मध्यम भेद ५६३ हैं । इन का पूरा विचार देखना होवे, तो प्रज्ञापना सिद्धांत तथा जीव समास प्रकरणादि शास्त्रों से देख लेना । ___ प्रश्न:-हे जैन ! दो इन्द्रियादिक जीव तो जीव लक्षण संयुक्त होने से जीव सिद्ध हो जाते हैं, परन्तु पृथिवी आदि पांच स्थावरों में जीव हम कैसे मान लेवें ? क्योंकि पृथिवी आदि में जीव का कोई भी चिन्ह उपलब्ध नहीं होता है। उत्तर:-यद्यपि पृथिवी आदि में जीव के होने का प्रकट
चिन्ह नहीं दीखता, तो भी इन में अव्यक्त स्थावर जीव रूप से जीव के चिन्ह दिखलाई देने से जीव की सिद्धि सिद्ध होता है । जैसे धतूरे तथा मदिरा
के नशे करके मूञ्छित् हुये जीवों में व्यक्त लिंग के अभाव होने से जीवपना है। तैसे ही पृथिवी आदि