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जैन तत्त्वादर्श
प्रश्नः - जैन मत में आत्मा का क्या लक्षण है ?
उत्तरः- चैतन्य लक्षण है ।
प्रश्नः - जैन मत में जीव प्राणी - आत्मा किस को कहते हैं ? यः कर्त्ता कर्मभेदानां, भोक्ता कर्मफलस्य च । संसर्त्ता परिनिर्वाता, स ह्यात्मा नान्यलक्षणः ||
[ शा० स०, स्त० १ श्लो० ९०]
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स्वरूप
उत्तरः- इस श्लोक से जान लेना । इस का भावार्थ कहते हैं- जो मिथ्यात्वादि करके कलुपित अर्थात् जीव तत्र का मैला हो कर वेदनीयादिक कर्मों का कर्त्ता - करने वाला, अरु तिन अपने करे हुये कर्मों का जो फल - सुख दुःखादिक, तिन को भोगने वाला, तथा कर्म विपाक के उदय से नारकादि भवों में भ्रमण करने वाला, अरु सम्यक् दर्शनादि तीन रत्नों के उत्कृष्ट अभ्यास से संपूर्ण कर्मश को दूर करके निर्वाण रुप होने वाला ही आत्मा है, वोही प्राण धारण करने से प्राणी और जीव है। यह
* यो मिथ्यात्वादिकलुषिततचा
वेदनीयादिकर्मणामभिनिर्वर्तकस्तत्फलस्य च सुखदुःखादेरुपभोक्ता नारकादिभवेषु च यथाकर्मविपाकोदयं संसर्त्ता सम्यग्दर्शनादिरत्नत्रयाभ्यासप्रकर्षवच्चा शेषकमांशापगमतः परिनिचीता स प्राणान् धारयति स एव चात्मेत्यभिधीयते ।
नोटः--विशेष के लिए देखो श्री मलयगिरिसूरि कृत वृत्ति में से जीवसत्तासिद्धि का प्रकरण ।