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जैनतत्त्वादर्श. वचनात्-इस वास्ते वैदिक मंत्रों की आचिंत्य शक्ति होने से उन मंत्रों से संस्कार किये हुए पशु को मारने से उस को अवश्य स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
सिद्धांती:-यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि वैदिक विधि के अनुसार किये जाने वाले विवाह, गर्भाधान, जातकर्मादि संस्कारों के विषे तिन मंत्रों का व्याभिचार देखने में आता है । विवाह के अनंतर ही स्त्री विधवा हो जाती है । तथा बहुत से मनुष्य अल्पायु, और दरिद्रतादि उपद्रवों करके पीडित होते हुए देखने में आते हैं । एवं वेद मंत्रों के संस्कार विना भी कितनेक विवाह करने वाले सुखी, धनी और नीरोग दीखते हैं । अतः वैदिक विधि से वध किये जाने वाले पशुओं को स्वर्गप्राप्ति का कथन करना केवल कल्पना मात्र है । इस वास्ते अदृष्ट स्वर्गादि में इस के व्यभिचार का अनुमान सुलभ है।
प्रतिवादीः-जहां विवाहादि में विधवादि हो जाती हैं, ' तहां क्रिया की विगुणता से विसंवाद-विफलता होती है।
सिद्धांती:-तुमारे इस कहने में तो यह संशय कभी दूर ही नहीं होगा। कि वहां पर क्रिया का वैगुण्य विसंवाद का हेतु है ? किंवा वेदमन्त्रों की असमर्थता विसंवादविषमता का हेतु है ?
प्रतिवादी:-जैसे तुमारे मत में *"आरुग्गवोहिलामं
* आ० चतु० स्त० गा ६ । छाया-आरोग्यबोधिलाभं समाधिव