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રૂ૨
जैनतत्त्वादर्श कर्म के वश तैसे उत्पन्न होती है, यही सिद्ध मानना चाहिये। ___ जेकर कहो कि आत्मा' होवे तो फिर जाता आता क्यों नहीं उपलब्ध होता? केवल देह के होने पर ही संवेदन उपलब्ध होता है, अरु देह के अभाव होने पर भस्म अवस्था में नहीं दीखता है। तिस वास्ते आत्मा नहीं, किंतु संवेदन मात्र ही एक है । सो संवेदन देह का कार्य है, और भीत के चित्र की भांति देह ही में आश्रित है। चित्र भीत के विना नहीं रह सकता है, अरु दूसरी भीत पर उस का संक्रमण भी नहीं होता है । किंतु भीत पर उत्पन्न हुआ है, अरु भीत के साथ ही विनाश हो जाता है | संवेदन भी ऐसे ही जान लेना । यह कहना भी असत् है । क्योंकि आत्मा स्वरूप करके अमूर्त है, अरु आंतर शरीर भी अति सूक्ष्म है, इस वास्ते दृष्टिगोचर नहीं होता। तदुक्तम्:
अंतराभावदेहोऽपि, सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यते । निष्क्रामन् प्रविशन् वात्मा, नाभावोऽनीक्षणादपि ॥ तिस वास्ते सूक्ष्म शरीरं युक्त होने से आत्मा आता जाता हुआ भी नहीं दीखता। परन्तु लिंग से उपलब्ध होता है। तथाहि-तत्काल उत्पन्न हुआ भी कृमि जीव अपने शरीर विषे ममत्व रखता है, घातक को जान कर दौड़ जाता हैं। जिस का जिस विषे ममत्व है, सो पूर्व ममत्व के अभ्यास से जन्य है, तैसे ही देखने से । अरु जितना चिर किसी वस्तुके